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समझौतों की कोई जु़बान नहीं होती (कविता)

तल्‍लीन चेहरों का सच

कभी पढ़कर देखना

कितने ही घुमावदार रास्‍तों पर

होता हुआ यह सरपट दौड़ता है मन

हैरान रह जाती हूँ

कई बार इस रफ्त़ार से

अच्‍छा लगता है शांत दिखना

पर कितना मुश्किल होता है

भीतर से शांत होना

उतनी ही उथल-पुथल उतनी ही भागमभाग

जितनी हम

किसी व्‍यस्‍त ट्रैफि़क के बीच

खुद को खड़ा पाते हैं

समझौतों की कोई

जु़बान नहीं होती फिर भी

वे हल कर लेते हर मुश्किल को

-सीमा सिंघल

(सीमा सिंघल जानी मानी लेखक व ब्लॉगर हैं सदा नाम से ब्लॉग लिखती है)

सीमा सिंघल की ये भी रचनाएं पढ़िए-

…इश्‍क़ की किताबों में (कविता)

वक्‍़त के पन्नों पर (कविता)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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