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चाय वाले (अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस पर विशेष)

सांकेतिक तस्वीरः गूगल साभार

एक तरफ चाय का प्याला,

दूसरी तरफ चाय वाले।

कोई बन गया प्रधानमंत्री,

बागानों में चाय वाले।

 

करते लोग चाय पे चर्चा,

मुंह तकते चाय वाले।

दो वक़्त की रोटी की उम्मीद,

खाली पेट चाय वाले।

 

सूखी हुई हैं अंतड़ियां,

रोटी को तकते चाय वाले।

खाते भर पेट संपन्न,

विपन्नता में चाय वाले।

 

जुमले-वादे सुनते नेता के,

उम्मीद में चाय वाले।

टूटती उम्मीद उनकी,

ठगे गए चाय वाले।

 

हैं जी रहे गरीबी में,

मेहनतकश चाय वाले।

सरकार बदली और सत्ता बदली,

खस्ताहाल चाय वाले।

 

बोटी तोड़ते पूंजीपति,

भूखे मरते चाय वाले।

पेट भर खाते पूंजीपति,

निवालों को तरसते चाय वाले।

 

मालिक वातानुकूलक में करते आराम,

दिन-रात काम करे चाय वाले।

पगार न मिले समय पर,

कंगाली में चाय वाले।

 

मालिक करें हेरे-फेर बही खाते में,

मेहनत की लूट देखते चाय वाले।

होता घपला पगार में करे ,

धोखा खाते चाय वाले।

 

अमीरी के सपने देखे मध्यमवर्गी ,

घर को देखे चाय वाले।

दिखावे में जीते मध्यमवर्गी।

हक़ीक़त से दो-चार चाय वाले।

 

महलों में तथाकथित नेता, पूंजीपति,

झोपड़ियों में चाय वाले।

तिजोरियां है धनाधिशेष,

मुफ़लिसी में चाय वाले।

 

मनोरंजन हो गई हैं ख़बरें,

बिक गए चलचित्र वाले।

चलचित्र पर है बेहूदी बकवास,

है नदारद चाय वाले।

 

खबर छापे कौन उनकी?

हो गए नकली अखबार वाले।

बिकती कलम दरबारों में,

गुमनामी में चाय वाले।

 

लिखे व्यथा कौन उनकी?

लिखते दो-चार शब्द जानने वाले।

लिखेंगे मेहनत उनकी स्वर्णाक्षरों में,

हम कभी न बिकने वाले।

-सुकुमार सुमित, शोधार्थी इतिहास 

(रचनाकार सुमित कविता लिखने का शौक रखते हैं और राजनीतिक कार्यकर्ता भी हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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