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डीयू में रिसर्च एसोसिएट का 18 वर्षों से नहीं बढ़ा वेतन, विभाग के प्रोफेसर के बराबर करते हैं काम

18 वर्षों से रिसर्च एसोसिएट, साइंस व आर्ट्स के विषयों के बीच हो रहा है भेदभाव, सातवां वेतन आयोग आज तक नहीं लागू

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) समेत देशभर के केंद्रीय, राज्य व मानद विश्वविद्यालयों के कला, मानविकी व विज्ञान विषयों के विभागों में सैंकड़ों की संख्या में रिसर्च एसोसिएट हैं जो पिछले 18 वर्षों से एक ही वेतन पर कार्य कर रहे हैं। पांचवें वेतन आयोग के बीच में इन रिसर्च एसोसिएट की नियुक्तियां की गई थी और अब इन विश्वविद्यालयों में सातवां वेतन आयोग लागू हो चुका है मगर इनका वेतन आज तक नहीं बढ़ा है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में रिसर्च एसोसिएट कार्य कर रहे हैं जैसे हिंदी, पंजाबी, उर्दू, फ़ारसी, संस्कृत विषयों के अलावा विज्ञान विषयों जैसे-केमिस्ट्री, फिजिक्स, बॉटनी, जूलॉजी आदि। इनका मुख्य कार्य विभागों में पंजीकृत छात्रों को पढ़ाना, पुस्तकालय की पूरी जिम्मेदारी निभाना, इसके अतिरिक्त विभाग द्वारा दिए गए शोध और प्रकाशन संबंधी कार्यों की देखरेख करना भी है।

दिल्ली विश्वविद्यालय की विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन ‘ने विज्ञान, कला और मानविकी विषयों में रिसर्च एसोसिएट के बीच भेदभाव को समाप्त करने तथा समान वेतन दिए जाने की मांग को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावेड़कर, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(यूजीसी)के चेयरमैन प्रो. डी पी सिंह को पत्र लिखकर मांग की है कि एक ही विश्वविद्यालय में समान कार्य करने वाले रिसर्च एसोसिएट के बीच वेतन को लेकर भेदभाव किया जा रहा है।

विज्ञान व कला क्षेत्र के विषयों में है भेदभाव

प्रो. हंसराज सुमन का कहना है कि कला एवं मानविकी विभागों में कार्यरत्त रिसर्च एसोसिएट को 16 हजार रुपये बेसिक तथा 30 फीसद एचआरए दिया जाता है इस तरह से उन्हें 20,800 रुपये प्रति माह दिए जाते हैं। जबकि विज्ञान विभागों (साइंस डिपार्टमेंट) में रिसर्च एसोसिएट जो कि यूजीसी के अंतर्गत कार्य कर रहे हैं उन्हें 45 हजार रुपये दिए जाते हैं। कला एवं मानविकी से दो गुना ज्यादा वेतन विज्ञान के रिसर्च एसोसिएट को दिए जाते हैं।

प्रो. सुमन ने बताया है कि केंद्र सरकार और यूजीसी ने रिसर्च को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिछले दिनों छात्रवृत्ति (फेलोशिप) में बढ़ोतरी की थी और वे आज जूनियर रिसर्च फेलोशिप 28,000 हजार रुपये, सीनियर रिसर्च फेलोशिप 35,000 हजार रुपये तथा पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप 55,000 हजार रुपये प्रतिमाह दिए जाते हैं। जबकि यूजीसी रिसर्च एसोसिएट को 45,000 हजार रुपये मासिक वेतन के रूप में दिया जा रहा है।

प्रो. सुमन का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यरत यूजीसी के अंतर्गत रिसर्च एसोसिएट (विज्ञान विभाग) व कला एवं मानविकी के रिसर्च एसोसिएट में वेतन को लेकर भारी असंतोष व्याप्त है। उनका कहना है कि जब दोनों(रिसर्च एसोसिएट) का बराबर काम है। वे भी विभागों में काम करते हैं, वे भी रिसर्च वर्क के साथ-साथ सर्टिफिकेट कोर्स और अन्य कक्षाएं पढ़ाते हैं। स्नातकोत्तर की कक्षाओं के अलावा शोध, विभागीय शोध कार्य व प्रकाशन का कार्य करते हैं। ऐसे में उनके साथ यह भेदभाव क्यों हो रहा है।

प्रो. सुमन ने मानव संसाधन विकास मंत्री और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के चेयरमैन को लिखे अपने पत्र में यह भी लिखा है कि ये रिसर्च एसोसिएट लंबे समय से एक ही वेतन पर कार्य कर रहे हैं। इन रिसर्च एसोसिएट की उम्र बढ़ती जा रही है। वे अपने विभागों और कॉलेजों में सहायक प्रोफेसर के लिए आवेदन भी करते हैं तो विभागों के अध्यक्ष व विषय विशेषज्ञों द्वारा इनकी नियुक्तियां भी जल्दी नहीं होती। ऐसी स्थिति में उम्रदराज होने पर वे कहां जाएं। कम से कम विज्ञान विभागों में कार्य कर रहे रिसर्च एसोसिएट के बराबर ही उनका वेतन कर दिया जाए तो विज्ञान, कला व मानविकी विषयों का भेदभाव तो दूर होगा।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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