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kavita


छिपकली का बलात्कार (कविता)

क्या सच होने वाला है जो मैंने अभी है देखा सपना था पर क्यों डरा रहा जैसे हो हकीकत जैसा छिपकली जो कूदती है इधर से उधर कल यही तो बोल रही थी मैं मम्मा…


समझौतों की कोई जु़बान नहीं होती (कविता)

तल्‍लीन चेहरों का सच कभी पढ़कर देखना कितने ही घुमावदार रास्‍तों पर होता हुआ यह सरपट दौड़ता है मन हैरान रह जाती हूँ कई बार इस रफ्त़ार से अच्‍छा लगता है शांत दिखना पर कितना…


…इश्‍क़ की किताबों में (कविता)

किसी सफ़े पे थी खिलखिलाती याद उसकी किसी सफ़े पे था उसकी मुस्‍कराहटों का पहरा इश्‍क़ की किताबों में करवटें बदलती रूहों का जागना उंगलियों के पोरों की छुँअन से फिर कहना उनका हौले-हौले से…