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दौर था जो थम गया: अटल की जयंती पर विशेष

दौर था जो थम गया
जल था जो जम गया

दौर बदलने दो
सफ़र फिर से शुरू होगा

जल को जमने दो
आसमां से बारिश बनके हमको आने दो

सपना था जो बन गया
अपना साथ लोगों के लिए बनता गया

सांस अब गैर लग रही है
लगता है मृत्यु पास आ रही है

दिल जल रहा है
मन खिल रहा है

तन फूल रहा है
धरती चूम रहा है

राम चिरइया संग आ गई है
अब हटो उड़ जाने दो

कल सुबह दूसरी नगरी जाना है
मन से मन का मिलन करा के
आवारा पंछी बन उड़ जाना है

जग बन तो गया
जनता खिल तो गई

मैं न रुका
सर न झुका

अमर कर गया कविता, गीत, राजनीति
भारत मां की कोख से जन्मे इस मनचले की रीत।

अलविदा…अटल बिहारी वाजपेयी

-नीरज सिंह

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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