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छिपकली का बलात्कार (कविता)

तस्वीरः गूगल साभार

क्या सच होने वाला है
जो मैंने अभी है देखा
सपना था
पर क्यों डरा रहा
जैसे हो हकीकत जैसा
छिपकली
जो कूदती है इधर से उधर
कल यही तो बोल रही थी मैं
मम्मा देखो-
‘कितनी चालू है
जब देखते हैं इसे
तो कैसे शरीफ़ बन जाती है
और जब कोई देख नहीं रहा होता
खूब धमाचौकड़ी मचाती है’
और आज
क्यों मेरी ही बिरादरी
इस हद तक गिर गई!
कभी 60 साल की औरत थी
कभी निर्भया
कभी 8 महीने की बच्ची की भयावह चीखें
अभी तो आसिफा के लिए ही
इंसाफ मांग रहे हैं हम
और आज हम इंसानों की जाति
इतनी गिर गई
छिपकली भी छोड़ी न गई
उस पर भी झपट गई
क्यों आया
उसकी इज़्ज़त का सवाल
अभी मेरे सपनों में
सिंक में गिरी थी
तो उसे बचाने से ही
आत्मीय रिश्ता बन गया था क्या
या, या…
हर फेमेनिन पर मंडरा रहा खतरा
मुझे कुछ आभास दिला रहा है
उन्होंने गैंग रेप किया
उस मासूम का
और कह दिया
लड़कियां कम हैं
‘हमें अपना वंश चाहिए’
शायद कोई हंस दे यह पढ़
पर यह सच है
मुझे अंदेशा
किसी प्रलय का हो रहा है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

प्रीत भारद्वाज
स्वतंत्र लेखिका और कवयित्री

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