कविताः अंत में तुम हम हो जाना
–नीरज सिंह सुनो, मेरे तुम हम बन जाना अपने ग़ुलाबी होठों की लाली हो सके तो हमारे माथे पर छोड़ जाना अपने हाथों की उंगलियों को मेरे बालों में सहलाते-सहलाते कहीं खो जाने देना हो…
–नीरज सिंह सुनो, मेरे तुम हम बन जाना अपने ग़ुलाबी होठों की लाली हो सके तो हमारे माथे पर छोड़ जाना अपने हाथों की उंगलियों को मेरे बालों में सहलाते-सहलाते कहीं खो जाने देना हो…
-प्रिया सिन्हा बेखबर से हम हम कभी थोड़ा बेखबर रहते हैं तो कभी सबकी खबर रखते हैं कुछ इस तरह सबकी जानकारी हम तो शब-ओ-सहर रखते हैं रहते तो हैं हम भी कभी ओझल,…
– संजय भास्कर अक्सर जब कभी मिल जाती है पुरानी डायरी तब लगभग हर उस शख्स के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है जिन्होंने कभी इस डायरी में कुछ सपने संजोये होंगे डायरी में…
-रीना मौर्या सुख- दुःख में जो साथ दे परायों में अपनों का अहसास दे जिससे जुड़ा न हो कोई मज़बूरी का रिश्ता जिसे दिल ने माना है अपना ही हिस्सा वो प्यारा सा अहसास है…