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कविताः बेखबर से हम

तस्वीरः गूगल साभार

-प्रिया सिन्हा

बेखबर से हम

हम कभी थोड़ा बेखबर रहते हैं

तो कभी सबकी खबर रखते हैं

कुछ इस तरह सबकी जानकारी

हम तो शब-ओ-सहर रखते हैं

 

रहते तो हैं हम भी कभी ओझल,

जरूर हीं इस दुनिया की नजरों से

लेकिन, हरेक लोगों के नजरिए पे हम

अपनी पैनी निगाह-ए-नजर रखते हैं

 

यूं तो बख्शते हैं मान-ओ-इज्जत हम

सदा ही अपने हर दिल-ए-अजीज को

लेकिन, करते नहीं गुफ्तगू उस शख्स से जो

जुबां पे शहद व दिल में अपने जहर रखते हैं

 

कुछ यूं है बनाया हमने तो अपने किरदार को

बेशक कोई याद करें न करें हमें सबके सामने

लेकिन, भूला भी ना पाएंगे वो तो कभी भी हमें

इतना यकीन तो खुद पे हम मगर रखते हैं

(शब = शाम , सहर = सुबह, गुफ्तगू = बातचीत, शख्स = व्यक्ति)

(प्रस्तुत कविता की रचयिता प्रिया बिहार की रहने वाली हैं। आप अपनी काव्य संग्रह पुस्तकों के लिए कई बार सम्मानित भी की जा चुकी हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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