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कविता

देखो सरहदें

देखो सरहदें अभी भी गुनगुनी सी हैं उबलने से पहले उसमें ‘मुहब्बत की फाँके घोल दो’ क्या ग़ैर तुम, क्या ग़ैर हम चलो, रात आने से पहले ‘इस गिरह के टाँके खोल दो’ दीवारें उम्मीद…


पर्यावरण विशेषः कहां गई उस तरु की हरियाली

कुछ दिन पहले झूम रहा था जाने क्या हुआ अब उसको उसके मन की करुण दशा भला बताए जाकर किसको सूखे मुरझाए हैं पत्ते, सूखी हर डाली-डाली कहां गई उस तरु की हरियाली गर्मी के…