देखो सरहदें अभी भी गुनगुनी सी हैं
उबलने से पहले उसमें
‘मुहब्बत की फाँके घोल दो’
क्या ग़ैर तुम, क्या ग़ैर हम
चलो, रात आने से पहले
‘इस गिरह के टाँके खोल दो’
दीवारें उम्मीद में झाँके हैं
इस पार भी, उस पार भी
क्या करें, दिल में सुराखें हैं
इस पार भी, उस पार भी
उसे बंद करने से पहले बस
‘एक दफा वो कोना टटोल दो’
क्या बैर तब, क्या बैर अब
हमसे लड़ने से पहले
ज़रा हाल-ए-दिल बोल दो
देखो सरहदें अभी भी गुनगुनी सी हैं
उबलने से पहले उसमें
‘मुहब्बत की फाँके घोल दो’
क्या ग़ैर तुम, क्या ग़ैर हम
चलो, रात आने से पहले
‘इस गिरह के टाँके खोल दो…’
पवन कुमार पटेल की कविता https://shorintheshamiyana.wordpress.com/ से
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