शीतल चौहान
नई दिल्लीः ऐसे कई पेड़-पौधे भी हैं जिनके होने से आस-पास के पेड़-पौधों का सही ढ़ंग से विकास नहीं हो पाता है। ये पेड़ जैव विविधता के लिए खतरा पैदा करते हैं। ऐसे ही एक पेड़ का नाम आप सभी बचपन से सुनते आ रहें हैं, यह कीकर (देसी बबूल) से थोड़ा अलग है- विलायती कीकर। खेतों में खड़ा यह पेड़ फसलों के लिए बेहद हानिकारक है। मगर इसके बावजूद ये यहां सड़क किनारे व खेतों में आमतौर पर देखने के लिए मिल जाते हैं। ऐसे में दिल्ली सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए कहा है कि दिल्ली के रिज क्षेत्र से ऐसे पौधे हटाये जाएंगे जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। ऐसे में ये जानना आवश्यक है कि आखिर ये पेड़ किस तरह से पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार के ग्रीन बजट में दिल्ली को कीकर फ्री बनाने की योजना भी है। अगर इन पौधों को हटाकर कुछ नई नेटिव प्रजातियों को लगाया गया तो दिल्ली पहले की तरह हरी भरी होगी और यहां पर जैव विविधता बनी रहेगी।
विलायती कीकर या विलायती बबूल (प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा)
यह अपने देश का ऑरिजिनल पौधा नहीं है। यह एक प्रकार का गैर देशी पौधा है जो बाहर से आकर पूरे देश में फैला हुआ है। मैक्सिकों, कैरीबियाई देशों और मध्य अमेरिका में नेटिव (पाया जाने वाला) पौधा है। इसे 1870 में अंग्रेजों ने अपने देश में लाकर फैलाया। ये जहां भी ये उगते हैं, आसपास के दूसरी प्रजातियों के फ्लोरा (वनस्पतियों) की वृद्धि को रोक देते हैं।
विस्तार
इसका विस्तार पूरे देश में है जैसे दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र के कुछ भाग में और तमिलनाडु में। अगर दिल्ली की बात करें तो यह 7777 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। दिल्ली का 80 प्रतिशत रिज (कटक क्षेत्र) में इसका विस्तार है।
क्या है मामला
विलायती कीकर घास की तरह एरिड परिस्थितियों में भी तेजी से वृद्धि करते हैं। ये अपने आसपास के प्रतिस्पर्धी पौधो की प्रजातियों को भी समाप्त कर देते हैं। ये वाटर टेबल को घटा देते हैं। मद्रास उच्च न्यायालय ने 2016 में एक अंतरिम आदेश पास कर इन पौधो को हटाने के लिए कहा था, क्योंकि ये पौधे ऐसे क्षेत्रों के वाटर टेबल को घटा देते है जो पहले से ही पानी की समस्याओं से जूझ रहे हैं। दिल्ली भी पानी का समस्याओं से जूझ रही है। ऐसे में विलायती कीकर की से कुछ हल तो निकल ही सकता है।
विशेषज्ञों की क्या है राय़
दिल्ली विश्वविद्यालय के पर्यावरण अध्ययन विभाग, के प्रो. सीआर बाबू का कहना है कि विलायती कीकर का हमने कभी कोई सकारात्मक उपयोग नहीं सुना। देसी कीकर या बबूल तो फिर भी औषधीय गुण रखता है और उसकी दातून भी दांतों के लिए फायदेमंद होती है, लेकिन विलायती कीकर हर तरह से प्रकृति और मानव जाति के लिए हानिकारक है। दिल्ली सरकार दिल्ली को इससे मुक्ति दिलाने के लिए सोच रही है तो यह वाकई एक बेहतर कदम है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज की प्रो. मोनिका कौल ने फोरम4 से हुई बातचीत में बताया कि विलायती कीकर एक तेजी से बढ़ने वाला पौधा है जो मिट्टी से सारे पौष्टिक तत्व को तेजी से खींच लेता है और अपने आस-पास के पौधों के लिए कुछ नहीं छोड़ता, जिससे उसके आसपास केवल उसी प्रजाति के पौधों की वृद्धि हो पाती है। उन्होंने बताया की इसका सफल उदाहरण दिल्ली के रिज ही हैं जो इस तरह अन्य पौधों पर प्रभावी हैं कि इसकी वजह से दिल्ली में न को फ्लोरा (वनस्पतियां) बचे हैं न ही फौना (चिड़ियां, तितलियां, लेपर्ड, सियार आदि)। साथ ही इन्होंने कहा की अगर पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर बनाना है तो हमें इन कीकर के पौधों को खत्म करके और प्रजातियों के पौधों को उगाना होगा, जिससे पेड़-पौधों से मिलने वाली आवश्यक चीजें हमें मिल सकें।
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