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पर्यावरण विशेषः कहां गई उस तरु की हरियाली

कुछ दिन पहले झूम रहा था
जाने क्या हुआ अब उसको
उसके मन की करुण दशा
भला बताए जाकर किसको
सूखे मुरझाए हैं पत्ते, सूखी हर डाली-डाली
कहां गई उस तरु की हरियाली

गर्मी के गरम थपेड़े
कितनी बार उसने है झेले
सर्दी की ठंढ हवाएं
झेला हंसकर दृढ़ अकेले
पर अम्बर में है अब, जब छाई बदरी काली
कहां गई उस तरु की हरियाली

उत्सव मना रहा हर कोई
फिर क्यूं वह शांत पड़ा है
ना जाने किस दर्द की पीड़ा
मूक हुआ वह ठूंठ खड़ा है
कारण उदासी का उसकी, नहीं जानता उसका माली
कहां गई उस तरु की हरियाली

देखकर उसकी वेदना
क्या दुखी है कोई और
संग नहीं अभी कोई उसके
यह जीवन का कैसा दौर
पूछ रहा यह प्रश्न खुद ही से, खुद व्यथित तरु की डाली
कहां गई उस तरु की हरियाली

(कुमार शिवनाथ जी के ब्लॉग “मन का पंछी” से)

 

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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