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आखिर विश्वविद्यालयों में ट्रांसजेंडर्स को कब मिलेगा न्याय

credit: google

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) और जेएनयू समेत देशभर की तमाम केंद्रीय विश्वविद्यालयों, राज्य स्तरीय विवि व डीम्ड विवि को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के चेयरमैन ने सुप्रीम कोर्ट के तीन साल पहले एक फैसले के अंतर्गत ट्रांसजेंडर्स को सुविधाएं मुहैया कराने की बात कही थी। उन्हें भी अनुसूचित जाति/जनजाति, ओबीसी समुदायों की तरह सुविधाएं देने की बात कही थी। लेकिन, उन्हें कोई सुविधाएं नहीं दी गईं।

क्या है मामला?

यूजीसी के चेयरमैन ने ट्रांसजेंडर छात्रों के कल्याणार्थ एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया था। ऐसा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 15 अप्रैल 2014 के निर्णय के बाद लिया, उसके बाद यूजीसी की अंडर सेक्रेटरी ने देशभर की सभी विश्वविद्यालयों को एक सर्कुलर जारी कर निर्देश दिए गए थे कि विवि एवं कॉलेजों में ट्रांसजेंडर से संबंधित विभिन्न मुद्दों को उचित एवं प्रभावी तरीके से लागू किया जाए। इस संदर्भ में यूजीसी ने उचित कार्यवाही करते हुए एक्सपर्ट की एक कमेटी बनाकर इस बात को लागू करने की बात कही है। एक्सपर्ट कमेटी ने सुझाव दिया है कि इक्वल अपॉर्चुनिटी सेल को इस संदर्भ में शोध और अन्य विभिन्न मुद्दों से संबंधित सभी जानकारी उपलब्ध कराए।

केवल वायदा ही, नहीं हुआ काम

डीयू विद्वत परिषद (एसी) के सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन’ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने के बाद से विभिन्न सेवाओं में आरक्षण उपलब्ध कराकर उनके हितों की रक्षा के लिए विशिष्ट प्रावधान किया गया है और पिछले दो साल इनका अलग श्रेणी में डीयू में रजिस्ट्रेशन किया गया था ताकि ये उच्च शिक्षा प्राप्त कर मजबूत बनें। उन्होंने कहा-

थर्ड जेंडर पर देशभर में कोई भी सेल नही बना है, मंत्रालय और यूजीसी कोई भी इस मामले में गम्भीर नहीं है। मैंने दो बार प्रवेश समिति में यह मुद्दा उठाया, हर बार प्रकोष्ठ बनाने और उनके लिए योजनाओं पर काम करने का वायदा किया मगर कुछ नहीं हुआ।

डीयू में तीन साल से धूल चाट रहा है यूजीसी का ट्रांसजेंडर संबंधी सर्कुलर

डीयू में शैक्षिक सत्र 2016-17 में ट्रांसजेंडर के 15 छात्रों ने अपना पंजीकरण कराया था। इसी तरह शैक्षिक सत्र 2017-18 में 86 छात्रों ने पंजीकरण किया था। लेकिन, इन वर्गों के लिए आज तक न तो कोई समिति बनी और न ही इनके प्रवेश को लेकर कोई नीति। इस वर्ष भी प्रवेश समिति की पहली बैठक में ट्रांसजेंडर संबंधी कई मुद्दों जैसे प्रवेश, हॉस्टल, स्कॉलरशिप व अन्य सुविधाओं पर चर्चा की थी, लेकिन बावजूद इसके आज तक न तो डीयू ने इक्वल अपॉर्चुनिटी सेल द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं को लेकर कॉलेजों को सर्कुलर ही भेजा और न ही कोई नीति बनी है।

थर्ड जेंडर को चाहिए सम्मान

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के 15 अप्रैल 2014 के ऐतिहासिक फैसले के बाद ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर के रूप में एक अलग पहचान मिली। इससे पहले इन्हें पुरुष या महिला के रूप में खुद को दर्शाना होता था। एक अनुमान के मुताबिक भारत में तकरीबन 20 लाख ट्रांसजेडर हैं।

अक्सर देखने में आया है कि थर्डजेंडर के लोगों के साथ समाज का रवैया सदैव भेदभाव का रहा है। समाज में वे अपनी पहचान छुपाकर जीने को मजबूर है। तमाम संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद समान व्यवहार तथा सम्मान उनके लिए भी एक स्वप्न है। देखा गया है कि अकादमिक जगत भी इससे अछूता नहीं है। यहां भी थर्डजेंडर के छात्रों के साथ प्रवेश से लेकर हर स्तर पर भेदभाव होता है।

एडमिशन कमेटी में रखी थी बातें

प्रो. सुमन ने बताया कि मैंने एडमिशन कमेटी के सामने थर्डजेंडर के सामने आने वाली दिक्कतों को रखा। मेरा मानना है कि शिक्षा एक मौलिक अधिकार है, सभी को बिना किसी भेदभाव के इसे प्राप्त करने का अधिकार है। थर्डजेंडर भी इसमें शामिल हैं। एडमिशन प्रक्रिया से लेकर शिक्षा तथा शिक्षण संस्थानों में हर प्रकार से उन्हें किसी भी तरह के भेदभाव से बचाने और सम्मान के साथ पढ़ने और जीने के लिए वे अपने प्रयास जारी रखेंगे। इसके लिए सामाजिक स्तर पर भी लोगों को जागरूक करने की आवश्यक्ता है। शिक्षा से समाज आगे बढ़ता है और किसी भी समाज और देश के विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए किसी को भी शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

थर्डजेंडर संबंधी डीयू में नहीं है आंकड़े

प्रो सुमन ने पत्र में यह भी मांग की है कि यूजीसी के सर्कुलर जारी होने के बाद से सेंट्रल, स्टेट और डीम्ड विवि और संबद्ध कॉलेजों में ट्रांसजेंडर्स के कितने एडमिशन अभी तक हुए हैं, उनके आंकड़े मंगवाएं जाएं। इन आंकड़ों को यूजीसी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में दर्ज करें कि प्रति वर्ष कितने प्रवेश विवि और कॉलेजों में हुए हैं। पिछले दो साल से थर्डजेंडर यानी कि अन्य कॉलम प्रवेश फॉर्म में दर्शाया गया है, लेकिन डीयू प्रवेश समिति या डीन के पास थर्डजेंडर में कितने प्रवेश हुए, या नहीं लिया अथवा छोड़कर चले गए इसकी कोई जानकारी नहीं है।

इक्वल अपॉर्चुनिटी सेल में बना सकते हैं सेल

डीयू में इनके लिए अभी तक कोई सेल भी नहीं बना और न ही इनसे जुड़ा साहित्य और अन्य सामग्री उपलब्ध है। इनके लिए सरकार की क्या योजनाएं लागू की गई है, कितना पैसा आया है, किस मद में लगा, इसकी कोई जानकारी नहीं है। इनके लिए विशेष सेल की आवश्यकता है।

सरकारी विज्ञापन की है जरूरत

थर्डजेंडर के एडमिशन के लिए सरकार को चाहिए कि इनमें ज्यादा से ज्यादा शिक्षा का प्रचार प्रसार हो इसके लिए यूजीसी, एमएचआरडी को इस संदर्भ में विज्ञापन के लिए रेडियो, टेलीविजन चैनलों व समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर इन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक करना चाहिए।

 

 

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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