-दिगम्बर नासवा
ढूंढ़ता हूँ बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर
उँगलियों से बनाए प्रेम के निशान
मुहब्बत का इज़हार करते तीन लफ्ज़
जिसके साक्षी थे मैं और तुम
और चुप से खड़े देवदार के कुछ ऊंचे-ऊंचे वृक्ष
हाँ… तलाश है बोले हुए कुछ शब्दों की
जिनको पकड़ने की कोशिश में
भागता हूँ सरगोशियों के इर्द-गिर्द
दौड़ता हूँ पहाड़-पहाड़, वादी-वादी
सुना है लौट कर आती हैं आवाजें
ब्रह्म रहता है सदा के लिए कायनात में
श्रृष्टि में बोला शब्द-शब्द
हालांकि मुश्किल नहीं उस लम्हे में लौटना
पर चाहत का कोई अंत नहीं
उम्र की ढलान पे
अतीत के पन्नों में लौटने से बेहतर है
साक्षात ब्रह्म से साक्षात्कार करना
(रचनाकार दिगम्बर नासवा जी स्वप्न मेरे नाम से ब्लॉग लिखते हैं। आपका ईमेल पता dnaswa@gmail.com है)
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