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दिगम्बर नासवा

कविताः साक्षात्कार ब्रह्मा से

-दिगम्बर नासवा ढूंढ़ता हूँ बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर उँगलियों से बनाए प्रेम के निशान मुहब्बत का इज़हार करते तीन लफ्ज़ जिसके साक्षी थे मैं और तुम और चुप से खड़े देवदार के कुछ ऊंचे-ऊंचे…


कविताः जिंदगी सिगरेट का धुआं

मुझे याद है धुएं के छल्ले फूंक मार के तोड़ना तुम्हें अच्छा लगता था   लंबी होती राख झटकना बुझी सिगरेट उंगलियों में दबा लंबे कश भरना फिर खांसने का बहाना और देर तक हंसना…