कविताः साक्षात्कार ब्रह्मा से
-दिगम्बर नासवा ढूंढ़ता हूँ बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर उँगलियों से बनाए प्रेम के निशान मुहब्बत का इज़हार करते तीन लफ्ज़ जिसके साक्षी थे मैं और तुम और चुप से खड़े देवदार के कुछ ऊंचे-ऊंचे…
-दिगम्बर नासवा ढूंढ़ता हूँ बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर उँगलियों से बनाए प्रेम के निशान मुहब्बत का इज़हार करते तीन लफ्ज़ जिसके साक्षी थे मैं और तुम और चुप से खड़े देवदार के कुछ ऊंचे-ऊंचे…
-दिगम्बर नासवा दिन पुराने ढूंढ लाओ साब जी लौट के इस शहर आओ साब जी कश पे कश छल्लों पे छल्ले उफ़ वो दिन विल्स की सिगरेट पिलाओ साब जी मैस की पतली…