मूषकों (रोडेंट्स- चूहों में) में नहीं मिलता रोजहिप न्यूरॉन्स
मानव मष्तिष्क अन्य प्रकार के जानवरों खासकर स्तनधारियों से किस प्रकार से अलग है, यह बहुत ही रोचक सवाल हो सकता है। इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए वैज्ञानिक हमेशा से प्रयासरत हैं इसके बारे में एलेन इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रेन सांइस में शोधरत ईडी लीन का कहना है कि हम वास्तव में यह नहीं समझ पाते कि हमारा मष्तिष्क कैसे अलग हैं। इसे समझने के लिए विभिन्न कोशिका और सर्किट्स स्तर पर अंतर को देखना ज्यादा आसान है।
इस शोध को नेचर न्यूरोसाइंस जर्नल में 27 अगस्त को प्रकाशित किया गया। लीन और अन्य ने इसकी पहचान करते हुए इस कठिन सवाल का जवाब ढूंढ़ निकाला कि आखिर हमारा मष्तिष्क अन्य़ स्तनधारियों से अलग कैसे है। हंगरी के स्जेगेड विश्वविद्यालय में शोधरत् लीन और टामस की टीम ने जिस कोशिका का पता लगाया वह चूहों व अन्य प्रयोगशाला में उपस्थित जानवरों में नहीं मिला।
इस नई कोशिका को रोजहिप न्यूरॉन्स बताया क्योंकि ब्रेन कोशिका की एक्सॉन केंद्र में काफी घनी होकर गुलाब की पंखुड़ी के तरीके से संरचना बनाती है। यह नई कोशिका इनहिबटरी (रोकने वाली) न्यूरॉन्स के वर्ग से संबंधित है जो दूसरे न्यूरॉन्स पर ब्रेक लगाती है। अब इससे आगे पता लगाया जाएगा कि जो लोग न्यूरोसाइकिट्रिक डिस्ऑर्डर से पीड़ित हैं उनमें यह कोशिका कैसे बदलती है, हो सकता है कि ये कोशिकाएं मानव बीमारियों के समय बदल जाती हों।
-प्रभात
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