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मेरी जिंदगी (कविता)

जितना ही मैं अपनी समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करती हूँ,

उतना ही अत्यधिक उलझनों में मुझे उलझाती जा रही मेरी जिंदगी;

चाहती तो हूँ मैं भी खूब हँसना-मुस्कुराना दिल से हर-दिन, हर-पल,

मगर अब तो और भी पल-पल मुझे रुलाती जा रही मेरी जिंदगी।

 

एक-एक कर सारे ही ख्वाब मेरे टूटते- बिखरते ही जा रहे,

और मेरे टूटे सपनों पे हँस के मुझे चिढ़ाती जा रही मेरी जिंदगी;

कहती है मुझसे तू लौट जा वापिस अपनी हकीकत की दुनिया में,

सारे ख्वाब पूरे हो सकें तेरे ये बात कोई जरूरी तो नहीं,

हर दिन इन कड़े अनुभवों से रूबरू मुझे कराती जा रही मेरी जिंदगी।

 

पर नादान इक दिल है ये मेरा जो किसी भी सूरत में हार मानने को तैयार नहीं,

इसलिए ही तो नित्य नए ख्वाब बेसब्री से मुझे दिखाती जा रही मेरी जिंदगी;

क्या हुआ आखिर जो मेरा कुछ एक सपना टूटकर है बिखर गया?

उन टूटे सपनों को संजों कर फिर से पूरा करने को मुझे उकसाती जा रही मेरी जिंदगी।

 

और ज्यों ही मैं उन टूटे हुए सपनों को संजों कर निरंतर आगे बढ़ी,

तो मेरे दृढ़ संकल्पों को देख हिम्मत मुझे बंधाती जा रही मेरी जिंदगी;

कहती मुझसे तेरे ख्वाब अवश्य ही पूरे होंगे ना हो तू उदास ना ही हो तू निराश,

क्योंकि आती है जरूर ही इक नई चमकीली सुबह अँधेरी काली रात के बाद,

इस तरह के विश्वस्त संवादों से विश्वास मुझे दिलाती जा रही मेरी जिंदगी।

(बिहार से प्रिया सिन्हा  ने यह कविता हमें लिख भेजी है। आप बहुत सारी साझा पुस्तकों में अपनी कविताएं प्रकाशित करा चुकी हैं। इसके लिए औऱ पेंटिंग की हुनर के लिए कई मीडिय़ा संस्थानों की ओर से सम्मानित भी की जा चुकी हैं)   

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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