-प्रिया सिन्हा
आज की नारी कहती –
मुझे किसी के भी स्नेह भरी छाँव की जरूरत नहीं,
अब अकेले ही इस कड़ी धूप में पिघलने दो मुझे
सब करीबी लोगों का सानिध्य बहुत पा लिया,
इसलिए थोड़ा दर्द-ओ-ग़म में भी ढ़लने दो मुझे
आज की नारी कहती है-
मेरे त्याग बलिदान व प्यार को किसी ने भी समझा नहीं
हर किसी ने समझा कभी मुझे कमज़ोर तो ढ़ूढ़ा खाम़ियाँ भी कई
ऐ खुदा! भर दे इतनी खूबियों से तू मेरा दामन और,
बन कर एक कसक सबके दिलों में खलने दो मुझे
आज की नारी कहती है-
सहारे की तलाश में जो मैं भटकते रही उम्र भर
और इस वजह से बन गयी इक दिन मैं बोझ सब पर
छोड़ दो मुझे अकेला अब और नहीं बनना मुझे किसी पे भी बोझ,
दो कदम ही सही पर खुद के दम पर तो अब चलने दो मुझे
आज की नारी कहती है-
कब तक दूसरों के सहारे आगे बढ़ूगी मैं?
आख़िर कब तलक हर किसी पे बोझ बनी रहूंगी मैं?
ऐ दोस्त! थोड़ा भरोसा तो कर मेरे दृढ़ हौसले पे तू,
और अब खुद ही पल-पल गिरने संभलने दो मुझे
आज की नारी कहती है-
ऐ मुश्किलों! मत कर हिम्मत मेरे मंजिलों को रोकने की
क्योंकि मैं आँधी में जलते हुए उस दीये की तरह से हूँ,
जो हर-पल, हर-दिन जिंदगी और मौत से जूझती रहती है
तो ऐ हवा! बुझाने की कोशिश मत कर अब इस तूफां में भी जलने दो मुझे
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