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कविताः मेरी सच्ची इबादत है

-प्रिया सिन्हा 

आज अभी हर-पल, हर-क्षण बस यही सोच रही हूँ मैं,

कि सबके सामने अपने प्यार का इजहार कर दूं;

चीख-चीख कर सब लोगों को बताऊं और खुद ही,

सबके सामने अपने प्यार का इकरार कर लूं

 

हाँ, मुझे तुमसे मुहब्बत है

लेकिन ये क्या तुम्हारे माथे पर ये पसीना,

और चेहरे पर ये घबड़ाहट कैसी?

तुम्हारे दिल की धड़कनें तेज व,

दिमाग में चल रही छटपटाहट कैसी?

तुम्हारा तन शांत और मन में ये वीरानियाँ कैसी?

तुम्हारे सूखे होंठ, आँखों में ये परेशानियाँ कैसी?

 

ओह,ये तो तुम्हारी पुरानी आदत है

क्यों डर लग रहा है क्या तुम्हें

कहीं मैं सबके सामने तुम्हारा नाम ना ले लूं?

हमारे तुम्हारे बीच जो ये लुका-छुपी का,

खेल है चल रहा कई वर्षों से,

कहीं मैं सबके सामने तुम्हें सरेआम ना कर दूं ?

 

अरे,ये कैसी बुजदिली वाली चाहत है ?

पर गौर से इतना तो जरूर हीं सुन लो तुम,

कि मुझसे जितना हीं दूर जाओगे तुम;

तुम्हारे उतना हीं पास चली आऊंगी मैं,

मुझसे जितना भी पीछा छुड़ाओगे तुम,

तुम्हारे उतना ही पीछे पड़ जाऊंगी मैं

आह,यही तो मेरी सच्ची इबादत है

 

भले ही तुमने न की हो मुझसे मुहब्बत सच्चे दिल से;

पर मैंने तो की है ये कह रही हूँ मैं आज इस महफिल से;

अब तो तुम्हारा नाम लिए बगैर सबके समक्ष,

मैं जरा भी अब साँसे भर ना सकूंगी

हाँ मुझे तुम्हारी जरूरत है ऐ मेरे “लक्ष्य”,

बिन हासिल किए तुम्हें सच, मैं तो चैन से मर ना सकूंगी

 

हाँ,क्योंकि अब आई कयामत है

(नोट :- यहाँ “लक्ष्य” का तात्पर्य किसी लड़के के नाम से नहीं बल्कि स्वयं के लक्ष्यों / सपनों / उद्देश्यों की प्राप्ति से है अर्थात ये प्रेम पंक्तियाँ स्वयं के लक्ष्यों को पाने व पूरा करने को समर्पित है।)

कविता सार

मुहब्बत के दो पहलू होते हैं :-

पहला पहलू”

कहते हैं जब हम मानव किसी से सही मायनों में प्यार करने लगते हैं तब हमारे प्रेम भाव से प्रभावित हो सामने वाला/वाली भी हमसे प्यार करने लग जाते हैं और हमारी प्यार की कद्र कर हमेशा के लिए हमारे हो जाते हैं।

ठीक उसी प्रकार जब हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के प्रति अपने तन, मन, धन से पूर्णत: उसको समर्पित हो जाते हैं और जब हमारे अथक प्रयास व मेहनत के बाद हमें हमारे लक्ष्यों की प्राप्ति हो जाती है, तब समझ लीजिए कि हमारे सच्चे प्यार को हमारे लक्ष्य ने सिर्फ स्वीकारा ही नहीं बल्कि उसे भी हमसे उतनी ही मुहब्बत हो गई जितनी की हमें थी या यूं कहिए कि हमसे भी अधिक हो जाती है जब हम अपने लक्ष्यों को हासिल कर निरंतर गतिशील हो अपना व अपने प्रियजनों का नाम रौशन करते हैं।

दूसरा पहलू”

जिस तरह से दो प्रेमियों में से कोई एक प्यार कर के कभी मुकर जाता है। हमसे नजरें चुराने लगता हैं। हमारे साथ छल करता है। ठीक उसी प्रकार से कभी-कभार हमारे सपने/ लक्ष्य/उद्देश्य भी हमसे छल करते हैं ।

जब उन्हें (लक्ष्य) लगता है कि हम उन्हें हासिल कर लेंगे तभी कोई नई चुनौती हमारे सामने आ जाती है और हम फिर से उन चुनौतियों का सामना करने में जुट जाते हैं, जिसमें कभी सफल तो कभी असफल भी हो जाते हैं।

(लेखिका प्रिया सिन्हा के ये अपने विचार हैं। फोरम4 भी सहमत हो ये कोई जरूरी नहीं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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