– संजय भास्कर
तू किसी रेल सी गुज़रती है, मैं किसी पुल सा थरथराता हूं – दुष्यंत कुमार
कवि और हिंदी के पहले गज़लकार स्व. दुष्यंत कुमार आज 1 सितंबर, 1933 के दिन ही पैदा हुए थे। दुष्यंत कुमार की कविताओं और उनकी गज़लों की क़ैफियत ये थी कि उसमें आम आदमी को आवाज़ मिलती थी। सरकारी नौकरी में रहते हुए भी, दुष्यंत की कलम व्यवस्था के खिलाफ चली। दुष्यंत कुमार शायर भर नहीं थे, बल्कि अपने दौर की ज़ुबान थे। उनकी भाषा में झुंझलाहट थी। समाज से कट चुकी सरकार को आइना दिखाते थे दुष्यंत कुमार। सभी विधाओं में लेखन किया, लेकिन उन्हें अपार लोकप्रियता गजलों के माध्यम से ही मिली। अन्यायपूर्ण राजनीति पर भी उन्होंने शब्दों से तीक्ष्ण प्रहार किया- निदा फ़ाज़ली उनके बारे में लिखते हैं
“दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से और नाराज़गी से सजी बनी है। यह ग़ुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मों के ख़िलाफ़ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है।” दुष्यंत कुमार की लेखनी ने हृदय में सदा के लिये अपना नाम अंकित कर लिया तभी तो ‘दुष्यंत कुमार’ आज भी अपने हर शब्द के साथ अपने ही नाम से जाने जाते हैं ।
कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।।
आज भी निराश मन को आशा से भरने के लिये इन शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो बताता है कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं, केवल मन में उसे करने की तीव्र लगन और उत्साह हो तो फिर आसमान में छेद किया जा सकता हैं। लोकप्रिय कवि यश मालवीय ने दुष्यंत कुमार के बारे में कुछ इस तरह से कसीदे काढ़े हैं…
”दुष्यंत की कविता ज़िन्दगी का बयान है। ज़िन्दगी के सुख-दुःख में उनकी कविता अनायास याद आ जाती है। विडम्बनाएं उनकी कविता में इस तरह व्यक्त होती हैं कि आम आदमी को वे अपनी आवाज़ लगने लगती हैं।”
70 का दौर कुछ ऐसा था कि शासन, सत्ता के खिलाफ गुस्सा हर तरफ जाहिर हो रहा था। अगर फिल्मों में अमिताभ बच्चन उभर कर आए तो कविताओं में दुष्यंत कुमार ही थे जिन्होंने आपातकाल में कहा था- ‘मत कहो आकाश में कुहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
दुष्यंत कुमार ने बहुत कम समय में वह लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी, जो हर किसी को नहीं मिलती. किन्तु नियति के क्रूर हाथों ने उन्हें छीन लिया। उनका निधन 30 दिसम्बर, 1975 में हुआ। केवल 42 वर्ष की अवस्था में हिन्दी गजल का एक नक्षत्र हमेशा के लिए अस्त हो गया। हिन्दी साहित्य जगत में उनकी कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता।
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