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गलतियां जान कर, पर बन कर अनजाने करो

सांकेतिक तस्वीर। गूगल साभार

रिश्ता तोड़ना है

तो कुछ बहाने करो

 

गलतियां जान कर

पर बन कर अनजाने करो

 

बेमतलब की, बेवजहों की

कुछ अफ़साने करो

 

रोज कहो मिलेंगे-मिलेंगे

पर थोड़ा कम आने-जाने करो

 

मत सुनो उसको गौर से

बस अपनी आवाज पर गाने-बजाने करो

 

उस शांत से रिश्ते वाली शहर में

कुछ चालू कारखाने करो

 

पर इतने मेहनत से भी बचने के तरीके हैं

अपना बनाने से पहले ही बेगाने करो

(यह गजल विकास दुर्गा महतो ने हमें लिख भेजा है। आप बिंदुधाम झारखण्ड से हैं और किताब ‘इबादत इश्क़ की’ के लिए काफी मशहूर हैं। यह किताब अमेज़न पर भी उपलब्ध हैं) 

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वक्‍़त के पन्नों पर (कविता)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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