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कांचा इलैया की किताबों और दलित शब्द के प्रयोग पर रोक को लेकर शिक्षक व छात्र सड़क पर उतरे

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के शिक्षकों, शोधार्थियों व अन्य छात्रों ने मंगलवार को उत्तरी परिसर में प्रतिरोध मार्च निकाला। यह प्रदर्शन राजनीति विज्ञान विभाग में एमए के पाठ्यक्रम से कांचा इलैया की किताबों और ‘दलित’ शब्द के अकादमिक प्रयोग को वर्जित किए जाने के विरोध में किया गया।

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बता दें कि किताबों पर रोक लगाने का निर्णय दिल्ली विश्वविद्यालय की शैक्षणिक मामलों की स्टैंडिंग कमिटी ने लिया था। इन सिफारिशों के विरोध में सैकड़ों शिक्षकों, शोधार्थियों व छात्रों ने कला संकाय में प्रदर्शन मार्च किया। सबने यही कहा कि कांचा इलैया की तीनों किताबों और नंदिनी सुंदर की किताब को पाठ्यक्रम से हटाना बेहद असंवैधानिक व सामाजिक न्याय की विरोधी मानसिकता का परिचायक है। साथ ही ‘दलित’ शब्द को संविधान में न होने के बहाने अकादमिक प्रयोग से हटाना इसी बीमार व अन्यायपूर्ण मानसिकता का परिचायक है। वक्ताओं ने कहा कि इसके लिए पूरा विश्वविद्यालय समुदाय आपसे अपनी कठोर आपत्ति दर्ज करता है। इस प्रतिरोध मार्च में सैकड़ों की संख्या में डीयू के तमाम शिक्षक, शोधार्थी व छात्रों ने हिस्सा लिया।

विश्वविद्यालय के कई विभागों के प्रोफ़ेसर्स ने इस निर्णय के विरोध में अपनी बात रखी। सबने स्टैंडिंग कमेटी (स्थायी) के निर्णय का विरोध किया और इस मंशा व कमेटी पर भी सवाल उठाए। राजनीति विज्ञान विभाग के भी कई प्रोफ़ेसर इस मार्च में शामिल हुए। साथ ही हिन्दी विभाग, इतिहास विभाग, दर्शनशास्त्र विभाग से शिक्षक व छात्र भी इस प्रदर्शन में हिस्सा लिए। दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के कई प्रतिनिधियों के साथ तमाम सामाजिक चिंतकों ने इस आंदोलन को अपना समर्थन देते हुए भाग लिया। डीयू देश का प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय की तमाम अकादमिक गतिविधियां पूरे मुल्क के पठन-पाठन के लिए एक नज़ीर जैसी रही है। यहां के पाठ्यक्रम को देखकर तमाम विश्वविद्यालय प्रभावित होकर पाठ्यक्रम बनाते हैं। समाज के बहुसंख्यक वंचित दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ी अकादमिक बहसों को दिल्ली विश्वविद्यालय ने हमेशा अपने पाठ्यक्रम में जगह दी है, जिसका असर ये दिखता है कि यहां एक समावेशी बहस का अकादमिक माहौल बनता रहा है। इस माहौल में वंचित-शोषित तबके से जुड़े संदर्भ ग्रन्थों को पाठ्यक्रम से निकाल देना देश के बहुसंख्यक वंचित-शोषित समाज के खिलाफ होने का अकादमिक संदेश देता है।

किसी भी विश्वविद्यालय में एक स्वस्थ्य अकादमिक बहस के लिए ज़रूरी है कि हम पाठ्यक्रमों में सभी तरह के विचारों को शामिल करें, न कि सत्ता विरोधी पाए जाने पर उन विचारों को पाठ्यक्रम से बाहर करना कहीं से भी उचित है।

विश्वविद्यालय के कुलपति को ज्ञापन भी सौंपा 
दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के पाठ्यक्रम से कांचा इलैया की किताबों और ‘दलित’ शब्द के विरोध में लिए गए निर्णय के विरोध में मार्च कर रहे शिक्षकों व छात्रों की ओर से डीयू के कुलपति को एक ज्ञापन भी सौंपा गया। उन्होंने लिखा है कि
दिल्ली विश्वविद्यालय देश का प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय की तमाम अकादमिक गतिविधियां मुल्क के अकादमिक पठन-पाठन के लिए एक नज़ीर जैसी रही हैं। यहाँ के पाठ्यक्रम से तमाम विश्वविद्यालय प्रभावित होकर पाठ्यक्रम बनाते हैं। समाज के बहुसंख्यक वंचित दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ी अकादमिक बहसों को दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने पाठ्यक्रम में जगह दी है, जिसका असर ये दिखता है कि यहां एक समावेशी बहस का अकादमिक माहौल बनता रहा है। इस माहौल में वंचित-शोषित तबके से जुड़े संदर्भ ग्रन्थों को पाठ्यक्रम से निकाल देना देश के बहुसंख्यक वंचित-शोषित समाज के खिलाफ होने का अकादमिक संदेश देता है। एक स्टैंडिंग कमेटी के पास इतना अधिकार कौन दे रहा हैं, जबकि इसपर एक खुली बहस होनी चाहिए कि विश्वविद्यालयों में क्या क्या पढ़ाया जाए।
आगे यह भी लिखा है कि किसी भी विश्वविद्यालय में एक स्वस्थ्य अकादमिक बहस के लिए ज़रूरी है कि हम पाठ्यक्रमों में सभी तरह के विचारों को शामिल करें, न कि सत्ता विरोधी पाए जाने मात्र से उन विचारों को पाठ्यक्रम से बाहर करना कहीं से भी उचित है।

आंदोलन के अंत में सबने कहा कि अगर विश्वविद्यालय इस संदर्भ में कोई निर्णय नहीं लेता है, तो एक बड़ा आंदोलन करके पूरे कैंपस को हम आंदोलित करेंगे।

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Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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