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कांचा इलैया की किताबों को पाठ्यक्रम से हटाने और ‘दलित’ शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने के खिलाफ डीयू में कल प्रतिरोध मार्च

कांचा इलैया की किताबों को पाठ्यक्रम से हटाने और ‘दलित’ शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने के खिलाफ डीयू में मंगलवार को प्रतिरोध मार्च हो रहा है। यह विरोध-प्रदर्शन डीयू के उत्तरी परिसर में आर्ट फैकल्टी के गेट नं 4 पर 2 बजे दोपहर में होगा।

दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों व शिक्षकों की समस्याओं को लेकर आए दिन विरोध प्रदर्शन होते ही रहते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन इन समस्याओं के इतर जब शिक्षा में पुस्तकों को पढ़ाए जाने को लेकर राजनीति शुरू हो जाए और पुस्तक पर रोक यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ही रोक लगाने का प्रस्ताव पास हो जाए तो ऐसे में विरोध प्रदर्शन के अलावा कोई विकल्प न तो छात्रों के पास बचता है और न ही शिक्षकों के पास। ऐसा ही एक मामला अभी हाल फिलहाल में दिल्ली विवि (डीयू) में देखने को मिला जहां पाठ्यक्रम से मशहूर दलित चिंतक कांचा इलैया की तीन किताबें हटाने की सिफारिश कर दी गई। इसके अलावा दलित शब्द को हटाने की सिफारिश भी की गई है। इन सबके विरोध में मंगलवार (30 अक्टूबर) को शिक्षकों की ओर से विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में कला संकाय (आर्ट फैकल्टी) में प्रतिरोध मार्च निकाला जाएगा।

गौरतलब हो कि दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक मामलों की स्थायी समिति ने 24 अक्टूबर को राजनीति विज्ञान की एमए कक्षा में पढ़ाई जाने वाली, मशहूर दलित चिंतक कांचा इलैया की तीन किताबें ‘हिंदू विरोधी’ बताते हुए हटाने की सिफ़ारिश की है। कांचा इलैया की  किताबें हैं- ‘व्हाई आई एम नाट अ हिंदू’, ’बफेलो नेशनलिज्म’ और ‘पोस्ट हिंदू इंडिया।’ इसके अलावा कमेटी को ‘दलित’ शब्द पर भी आपत्ति है और वह नहीं चाहती कि विश्वविद्यालय के अकादमिक विमर्श में इस शब्द का इस्तेमाल हो।

प्रतिरोध मार्च की यह है रूपरेखा

दिल्ली विवि के शिक्षक लक्ष्मण यादव के फेसबुक वाल से मिली जानकारी के अनुसार दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस में कांचा इल्लैया, नंदिनी सुंदर की किताबों व ‘दलित’ शब्द के हटाए जाने के विरोध में 30 अक्टूबर को 2 बजे निर्धारित विरोध के लिए वक्ता के रूप में राजनीति विज्ञान विभाग से प्रोफेसर एन सुकुमार, प्रो सरोज गिरी, प्रख्यात सामाजिक चिंतक दिलीप सी मंडल और दर्शनशास्त्र विभाग से प्रो केशव के नाम तय हो चुके हैं।

इसके अलावा इस विरोध प्रदर्शन को सैकड़ों शोधार्थियों व छात्रों का समर्थन मिलने की संभावना है।

नरेंद्र मोदी की जाति पर खोज बना सरकार की परेशानी का कारण

प्रख्यात सामाजिक चिंतक दिलीप सी मंडल ने अपने फेसबुक वाल पर पोस्ट में लिखा है-

मेरे प्रिय दोस्त प्रोफेसर कांचा इलैया गड़ेरिया की किताबें दिल्ली यूनिवर्सिटी ने अपनी रीडिंग लिस्ट से हटा दी है। कांचा से नरेंद्र मोदी सरकार परेशान क्यों हैं।

आइए मैं बताता हूं एक राज की बात।

कांचा इलैया इस देश में जाति व्यवस्था के बड़े अध्येता हैं। उन्होंने नरेंद्र मोदी की जाति पर खोज की है। इससे पता चला है कि उनकी जाति मोड घांची 1994 से पहले सवर्ण बनिया श्रेणी में थी। 1994 में इसे गुजरात में पिछड़ी जाति की लिस्ट में शामिल किया गया जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, तब 1999 में ये जाति पहली बार ओबीसी की लिस्ट में शामिल की जाती है।

इस तरह सवर्ण होकर जन्मे नरेंद्र मोदी ओबीसी बन जाते हैं. इसलिए उन्हें बार बार यह कहते रहना पड़ता है कि वे ओबीसी हैं।

नरेंद्र मोदी मंडल कमीशन की मूल लिस्ट मे शामिल जातियों के हिसाब से ओबीसी नहीं हैं।

यह सिफ़ारिश आरएसएस की सुचिंतित योजना मानी जा रही है। खदु कांचा इलैया ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि उन्होंने हाल में एक लेख के ज़रिए साबित किया है कि मोदी ने बनिया होने के बावजूद खुद को 2014 के चुनाव के पहले ओबीसी बताकार वोट हासिल किया। इसी से नाराज़ होकर उनकी किताबें हटाई जा रही हैं।

किताबें पढ़ी ही नहीं और लगा दिया प्रतिबंध!

कांचा इलैया का दावा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय की जिस कमेटी ने उनकी किताबें हटाने की सिफारिश की है, उसके सदस्यों ने उनकी किताब पढ़ी ही नहीं। वास्तव में ‘गॉड ऐज़ पोलिटिकल फिलास्फर: बुद्धाज़ चैलेंज टू  ब्राह्मनिज्म’, जो वास्तव में उनकी पीएचडी थीसिस है, पूरी तरह राष्ट्रवादी किताब है। ‘व्हाई एम आई नॉट अ हिंदू’ को क्लासिक माना जाता है और दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में यह पढ़ाई जाती है। हिंदुत्ववादियों ने 2012 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी में इसे पढ़ाने से रोकने का असफल प्रयास किया था, वही अब दिल्ली में कर रहे हैं।

कांचा इलैया के मुताबिक उनकी किताब ‘पोस्ट हिंदू इंडिया’ दस साल के रिसर्च का नतीजा है। उनकी किताबें सावरकर और गोलवलकर या उन लोगों की तरह नहीं हैं जो कल्पना के सहारे लिखते थे। कुछ समय पहले जेएनयू में ‘व्हाई आई एम नॉट अ हिंदू’ को महात्मा गाँधी की ‘हिंद स्वराज’ और डॉ. आंबेडकर की ‘जाति का उच्छेद’ के साथ तुलनात्मक पाठ की तरह पढ़ाया जाता था। क्या आरएसएस और बीजेपी के लोग इन किताबों को भी भारत से हटाना चाहते हैं। दरअसल वे भारतीय विश्वविद्यालयों में विचारों की विविधता को नष्ट करना चाहते हैं। उनकी मंशा उत्पादक जातियों को शक्तिशाली होने से रोकना है।

इससे पहले भी हो चुका है विवाद

कांचा इलैया की किताबों को लेकर यह कोई नया विवाद नहीं है पिछले साल 2017 में कुछ वैश्व समुदाय के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में पोस्ट हिंदू इंडिया पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने की याचिका डाला था। लेकिन न्यायालय ने इस प्रतिबंध की मांग के खिलाफ यह कहते हुए निर्णय दिया था कि किताबों पर प्रतिबंध लगाना उनकी क्षमता में नहीं आता। लेखक अपना विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। इस निर्णय के आलोक में अगर देखा जाए तो डीयू की स्थायी समिति का किताबों पर रोक लगाने का प्रस्ताव अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध है।

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Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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