देशभर के केंद्रीय, राज्य और मानद विश्वविद्यालयों के अलावा, सहायता प्राप्त व अनुदान प्राप्त विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध महाविद्यालयों में सहायक प्रोफेसर के पदों पर स्थायी नियुक्ति (परमानेंट अपॉइंटमेंट) की प्रक्रिया शुरू न होने से शिक्षकों की परेशानी बढ़ती जा रही है। इसके लिए सरकार से आरक्षण नीति पर जल्द विधेयक लाने के लिए एमएचआरडी मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर को दिल्ली विश्वविद्यालय विद्वत परिषद के सदस्य हंसराज सुमन ने एक खुला पत्र लिखा है। इस पत्र में 5 मार्च के उस पत्र का हवाला दिया दिया गया है जिसमें रोस्टर को वरिष्ठता के आधार पर नहीं बल्कि विभागवार, विषय के आधार पर रोस्टर बनाने के निर्देश दिए थे।
5 मार्च 2018 को यूजीसी के संयुक्त सचिव द्वारा सभी विश्वविद्यालयों को भेजे गए पत्र में आरक्षण नीति का अनुपालन करने को कहा गया था। पत्र के आने के बाद विश्वविद्यालय के विभागों/कॉलेजों के रोस्टर में बदलाव किया। यह रोस्टर पहले कॉलेज को एक यूनिट मानकर वरिष्ठता के आधार पर 200 पॉइंट पोस्ट बेस्ड रोस्टर बनाया गया था। इस रोस्टर से सभी वर्गों के उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ मिल रहा था लेकिन, इस पत्र के आने के बाद से जहां छोटे विभाग हैं उनमें एससी, एसटी की सीटें खत्म हो गईं, जिसका सबसे बड़ा खामियाजा आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को उठाना पड़ा।
हंसराज सुमन ने एमएचआरडी को लिखे खुले पत्र में कहा कि सरकार देशभर के विश्वविद्यालयों /उच्च शिक्षण संस्थानों में एससी, एसटी, ओबीसी और दिव्यांगों की नियुक्तियों में पुराना तरीका लागू करते हुए 2 जुलाई 1997 से कॉलेज को एक यूनिट मानकर वरिष्ठता के आधार पर 200 पॉइंट पोस्ट बेस्ड रोस्टर लागू कराए।
प्रो. सुमन के अनुसार विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति संबंधी, आरक्षण नीति पर सरकार दो हफ्ते के भीतर विधेयक लाने की तैयारी में है। ऐसा उन्हें विधि मंत्रालय से पता चला है। इससे पहले श्री जावड़ेकर ने कहा था कि हम शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध में आरक्षण नीति की आवश्यकता पर लगातार निगरानी रख रहे हैं और आरक्षण के लागू करने की प्रक्रिया के अनुसार त्वरित कार्यवाही कर सकते हैं।
प्रो. ने पत्र में लिखा है कि अक्टूबर 2017 में यूजीसी ने विश्वविद्यालयों में बजाय विश्वविद्यालय या संस्थान स्तर पर रोस्टर लागू करने के विभागीय स्तर पर आरक्षण रोस्टर लागू करने का आदेश पारित किया था जो कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश (अप्रैल 2017) के आधार पर था। इस नियम को नकारते हुए देशभर के विश्वविद्यालयों ने इसका विरोध किया और कहा कि यह नियम आरक्षण विरोधी है और आरक्षण प्राप्त कमजोर तबकों के उच्च शिक्षा तथा नोकरियों से वंचित करने वाला है।
सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई में हो रही देरी
उनका कहना है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) इन बातों पर लगातार निगरानी किए हुए है। इसी क्रम में उसने सुप्रीम कोर्ट में विशेष छूट याचिका (एसएलपी) दायर कर दी लेकिन, अभी तक उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई है। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में देरी के चलते एससी, एसटी और ओबीसी कोटे की सीटों पर कई विश्वविद्यालयों में नए रोस्टर के आधार पर नियुक्तियां भी कर दी गईं उसका सबसे बड़ा उदाहरण सेंट्रल यूनिवर्सिटी हरियाणा है जहां पर 28 पदों पर सामान्य वर्गों की नियुक्ति कर दी गई। कोई भी पद एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण से नहीं भरा। उनका कहना है कि यही सिलसिला अन्य विश्वविद्यालयों में चलता रहा तो आरक्षित सीटों पर सामान्य वर्गों की भर्ती हो जाएगी।
सरकार लाए अध्यादेश
प्रो. सुमन ने चिंता जताई है कि यदि सरकार द्वारा डाली गई विशेष याचिका पर अपना जल्द फैसला नहीं देता है तो या फैसला आरक्षण नीति के संस्थान या विश्वविद्यालय स्तर पर लागू करने के विरुद्ध आता है तो एमएचआरडी तुरंत एक अध्यादेश लाकर पिछले डेढ़ साल पहले कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में आए सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफ़ेसर व प्रोफ़ेसर के पदों पर अध्यादेश लाकर नियुक्तियों को अंतिम रूप दे क्योंकि इन पदों की विश्वविद्यालय स्तर पर स्क्रुटनी और स्क्रीनिंग हो चुकी है। साथ ही अकेले दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछले दस वर्षों से 4500 एडहॉक शिक्षक स्थायी नियुक्ति का इंतजार कर रहे हैं।
विश्वविद्यालय/कॉलेजों को बनाना होगा फिर से नया रोस्टर
प्रो सुमन का कहना है कि यदि विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में आरक्षण को लेकर मंत्रालय जल्द ही कोई अध्यादेश नहीं लाती है तो 5 मार्च के यूजीसी पत्र के आधार पर विश्वविद्यालयों के विभागों और सम्बद्ध कॉलेजों को फिर से नया रोस्टर तैयार करना होगा। पहले कॉलेजों व विभागों ने रोस्टर को कॉलेज को एक यूनिट मानकर वरिष्ठता के आधार पर 200 पॉइंट पोस्ट बेस्ड रोस्टर बनाया था और उसी के आधार पर कॉलेजों ने सहायक प्रोफेसर के 4500 पदों के विज्ञापन निकाले थे जिसके आधार पर कॉलेजों में विषयवार स्क्रीनिंग भी हो चुकी है। इस पत्र के बाद अब कॉलेजों को नया रोस्टर तैयार करके डीयू से पास कराकर पदों को विज्ञापित कराना होगा।
विश्वविद्यालय/कॉलेजों द्वारा निकाले गए पदों की समय सीमा समाप्त होने के कगार पर
एमएचआरडी को लिखे खुले पत्र में उन्होंने बताया है कि डीयू व उससे सम्बद्ध कॉलेजों में डेढ़ साल पहले 4500 एडहॉक टीचर्स को स्थायी करने वाले विज्ञापन आये हैं और विश्वविद्यालय ने स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। इसके अंतर्गत विभागों में 150 पदों पर नियुक्तियां हुई थी बाद में इसे रोक दिया गया।
यूजीसी के पत्र से एससी, एसटी, ओबीसी शिक्षकों में मची खलबली
प्रो. सुमन का कहना है कि यूजीसी के 5 मार्च के पत्र आने से सबसे ज्यादा खतरा एससी, एसटी और ओबीसी के उम्मीदवारों पर मंडरा रहा है। यूजीसी के नए आदेश से आरक्षित वर्गों के शिक्षकों में रोष व्याप्त है। नये रोस्टर के चलते उनकी सीटें कम हो जाएंगी। वर्तमान में कॉलेजों में 4500 शिक्षकों में से 2500 शिक्षक एससी, एसटी, ओबीसी कोटे के हैं लेकिन, अब नया रोस्टर बना तो छोटे विभाग में कभी भी आरक्षित वर्ग की सीट ही नहीं बनेगी। नए रोस्टर के चलते सीटें कम हो जाएंगी और उनके लिए निर्धारित एससी-15, एसटी-7.5 और ओबीसी-27 फीसद आरक्षण कोटा कभी पूरा नहीं होगा।
प्रो. सुमन ने सरकार को कोसा
प्रो. सुमन ने सरकार की कड़े शब्दों में आलोचना की और कहा कि अभी तक 200 पॉइंट पोस्ट बेस्ड रोस्टर में उन्हें आसानी से पद मिल जाते थे। उनका कहना है कि जहां 200 पदों के लिए एससी, एसटी, ओबीसी कोटे के उम्मीदवारों को 100 पदों पर नियुक्ति मिल जाती थी लेकिन, अब छोटे विभागों में आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के लिए सीट बन नहीं पाएगी। विभाग में जहां 4 पद हैं उसमें एक उम्मीदवार ओबीसी कोटे से आ पायेगा लेकिन, एससी, एसटी से तो कभी नहीं। सरकार को जल्द ही इसके लिए अध्यादेश ले आना चाहिए।
उन्होंने बताया है कि स्वयं मानव विकास मंत्रालय का मानना है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लगभग 6000 रिक्त पदों पर नियुक्तियां होनी बाकी है। यदि सही आरक्षण रोस्टर (विश्वविद्यालय को यूनिट मानते हुए) नहीं लागू किया गया तो एससी, एसटी और ओबीसी के प्रति सामाजिक न्याय असंभव होगा
Be the first to comment on "देशभर के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति के लिए सरकार से विधेयक लाने की मांग"