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चौपाल

कविताः जिंदगी सिगरेट का धुआं

मुझे याद है धुएं के छल्ले फूंक मार के तोड़ना तुम्हें अच्छा लगता था   लंबी होती राख झटकना बुझी सिगरेट उंगलियों में दबा लंबे कश भरना फिर खांसने का बहाना और देर तक हंसना…


कविताः यह पल प्रभाव डालेगा

मरना लाज़मी है पर मर कैसे रहे हैं, यह पल प्रभाव डालेगा ज़िन्दा मर रहे हैं या ज़िन्दा रहने के लिए मर रहे हैं   भूख मारने के लिए मर रहे हैं, या भूखे मर…


कविताः अनाथ है, फिर भी खुश है

न कोई साथ था, न कोई पास था मैंने फिर भी एक अकेली बच्ची को हंसते देखा।   न जाने कौन सी मजबूरी थी जो उसे छोड़ दिया उस नादान को इस बेगैरत दुनिया में…


दोहाः साला-साली शब्द

बात-बात में निकलते, साला-साली शब्द। देवनागरी हो रही, देख-देख निःशब्द।।   अगर मनुज के हृदय का, मर जाये शैतान।, फिर से जीवित धरा पर, हो जाये इंसान।।   कमी नहीं कुछ देश में, भरे हुए…