मरना लाज़मी है
पर मर कैसे रहे हैं, यह पल प्रभाव डालेगा
ज़िन्दा मर रहे हैं
या ज़िन्दा रहने के लिए मर रहे हैं
भूख मारने के लिए मर रहे हैं,
या भूखे मर रहे हैं
कोई बीमारी ने मार डाला है
या बीमारी को दूर भगाते-भगाते मर रहे हैं
किसी को मारने के लिए मर रहे हैं
या ख़ुद मरने के लिए किसी को मार रहे हैं
किसी की यादों ने अंदर से मारना शुरू किया है
या बाहर से खुद मरने लगे हैं
पिता जी के सपनों की बोझ मारेगी,
या उस छोटे से सपने को बोझ समझ के हम मरने लगेंगे
बहन की शादी कराने के लिए मरेंगे
या शादी कराते-करते मर जाएंगे
मरने के बाद कब्र में शुकून मिलेगा कि
सूखी लकड़ियों पर, या बहते शीतल जल में
मरने के बाद चील, कौओं का पेट भरते हैं
या अघोरियों के काम आते हैं
मरना लाज़मी हैं
मगर मरेंगे कैसे यह पल प्रभाव डालेगा
रचनाकार नीरज सिंह पत्रकारिता के छात्र हैं।
ईमेलः neerajgolu8285@gmail.com
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