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कविता

कविताः गुलाब को काँटों के बीच खिलकर महकना तो है ही

-प्रभात अन्धकार है अभी तो प्रकाश एक दिन मिलेगा ही रात में जूगनू और तारों के बाद सूरज खिलेगा ही हैं पुष्प जो खूबसूरत, काँटों से दबे चीखते ही हैं कुछ कीचड़ के आगोश में कई…


कविताः जब टेस्टोस्टेरोन बढ़ जाता है

मेरा मनोचिकित्सक भी आदमी है मेरे साथ मनोविज्ञान-मनोविज्ञान खेलता है मुझे मनोविज्ञान-मनोविज्ञान खेलना पसंद नहीं क्योंकि वो मुझसे झूठ बोलता कहता है- आदमियों को कोसा न करो शरीर में टेस्टोस्टेरोन बढ़ जाता है   बेवकूफ़…


कविताः मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ

अस्सी घाट जैसा तुम में मिलना चाहता हूँ मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ   मंडुआडीह जैसा हवाओं में उड़ना चाहता हूँ मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ  …


कविता: बाधक! जय हो तुम्हारी

जय हो तुम्हारी, विजय हो तुम्हारी, कदम-कदम पर बनने वाले बाधक! जय हो, विजय हो, हर पल में अपराजय हो तुम्हारी। क्योंकि, जब होगी जय तुम्हारी, जब होगी विजय तुम्हारी, तब-तब मेरा साहस खुद जागेगा,…