अस्सी घाट जैसा तुम में मिलना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ
मंडुआडीह जैसा हवाओं में उड़ना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ
मणिकर्णिका घाट सा तुम में जलना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ
रामु सिंह के छोले और चाय सा मशहूर होना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ
पान , गुटका , सिगरेट सा सभी के दिलों में होना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ
गंगा में चलती नावों सा बहना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ
घाटों पर चिलम से उड़ता हुआ गांजे का धुआं बनना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ
बनारसी पान का पत्ता होना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ
बनारस के मंदिरों पर उड़ते पंछियों का पंख होना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ
जो हवा तुम्हारे ज़ुल्फों को छूती हैं वो गुलाबी हवा होना चाहता हूँ
मैं तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ
हर-हर महादेव की नगरी का हर एक रूप होना चाहता हूँ
मैं अब कैसे कहूँ तुम्हारे इश्क़ में बनारस सा होना चाहता हूँ
(रचनाकार नीरज सिंह पत्रकारिता के छात्र हैं। आपसे इनके ईमेल neerajgolu8285@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)
Bhat mast likhi he bhai