कविताः मुहब्बत का बाजार
-प्रिया सिन्हा मुहब्बत के बाजार में हर कोई, अपना दिल बिछाये बैठे हैं; किसी का दिल जल्द बिक जाता, तो कोई वर्षों लगाये बैठे हैं कोई तय करने में इसकी कीमत, अपना कीमती वक्त…
-प्रिया सिन्हा मुहब्बत के बाजार में हर कोई, अपना दिल बिछाये बैठे हैं; किसी का दिल जल्द बिक जाता, तो कोई वर्षों लगाये बैठे हैं कोई तय करने में इसकी कीमत, अपना कीमती वक्त…
-ऋतु एक शाम बिताने की ख्वाहिश है तुम्हारे साथ और एक कप कॉफी की चाहत है तुम्हारे साथ नहीं, प्रेमी-प्रेमिका की तरह बिल्कुल नहीं एक दूसरे की आंखों में देखते हुए भी नहीं एक…
-विवेक आनंद सिंह किसी सूरत को देखा किसी मूरत को देखा बदलते हर एक मौसम में किसी अपने को देखा खुमारी के आलम में, नशा चढ़ कर जो बोला है लगा के आग सीने…
खुद के लिए जीना तो क्या जीना जमाने को रोशनी देना चाहे खुद को राख कर देना जरूरत से कुछ ज्यादा ही पाया है पाकर भी बहुत कुछ रास न आया है हर एक…