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कविता

कविताः फूले हुए पेट

-सुकृति गुप्ता मैं उन बच्चियों को देखती हूँ बारह, तेरह, चौदह, पंद्रह बरस की उनके चेहरे की मासूमियत उनका चुलबुलापन, उनकी मुस्कुराहट उनका सँजना-सँवरना लड़कों को देखकर खिलखिलाना देखती हूँ   कोई और भी है…


कविताः निश्छल प्रेम 

– धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया न जाने कहाँ रहते हैं वो लोग जो करते हैं बहुत सारा स्नेह किसी से बेशर्त कब आते हैं, कैसे आयेंगे, किसको स्नेह करने आयेंगें ? पता है क्या ?  …


कविताः भगवे और हरे को मिला एक नया रंग बना दें

-दिगम्बर नासवा रंगों के नए अर्थ … चलो रंगों को नए अर्थ दें नए भाव नए रंग दें   खून के लाल रंग को पानी का बेरंग रंग कहें (रंगों की विश्वसनीयता बरकरार रखने के…


कविताः मेरा ऐसे ख्वाबों से ही नाता है

-संजय यादव कुछ ख्वाब ऐसे भी रहे जिन्हें न पलकें मिलीं ना आँसुओं का साथ मिला जिन्हें न रात की नींद नसीब हुई न भोर की हक़ीक़त का प्रकाश मिला मेरा ऐसे ख्वाबों से ही…