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कविताः निश्छल प्रेम 

तस्वीरः गूगल साभार

– धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया

न जाने कहाँ रहते हैं वो लोग जो करते हैं बहुत सारा स्नेह किसी से बेशर्त

कब आते हैं, कैसे आयेंगे, किसको स्नेह करने आयेंगें ?

पता है क्या ?

 

क्या ये भी पैमाने बनाते हैं हमारी तरह ?

क्या सुनते होंगें वो किसी की सदायें

अगर सुनते हों, तो फिर सुन लें…

 

या कोई सुना दे जाकर

कि जरूरत हैं यहाँ

बहुत जरूरत है…

 

क्या  देखा है किसी ने उनको

कैसे दिखते हैं वो…

हम-तुम जैसे होते हैं क्या ?

क्या इतना मुश्किल हैं स्नेह वालों का मिलना

बाजारों मेलों में भी नहीं मिलते…

 

मिलते होते, तो शायद इनका भी मोल लगा ही लेते हम

और सजा लेते अपने घरों में

पर फिर ये ‘प्यार करने वाले’ कहाँ रह जाते

‘सजावटी’ भर रह जाते न

पर बताओ…

 

आते तो हैं न ये प्यार करने वाले

आयेंगें न कभी न कभी

करेंगें फिर आकर मुझसे निश्छल प्रेम

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

3 Comments on "कविताः निश्छल प्रेम "

  1. Vineet tiwari | July 10, 2018 at 12:56 PM | Reply

    Bhut shandaar,✌?????

  2. Vineet tiwari | July 10, 2018 at 1:00 PM | Reply

    Owsome ????

  3. Awesome

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