हौसला है तो आप जंग जीत सकते हैं। जीवन में आप कुछ भी करने की चाहत रखते हों और आपके पास जुनून भी हो तो आपको मुकाम हासिल करने से कोई भी रोक नहीं सकता। इंसान में अगर कोई हुनर है और अगर उसके लिए सब कुछ वही हो तो उसके लिए पैसे कमाना भी बहुत बड़ी बात नहीं है। ऐसे ही एक शख्स अरविंद कुशवाहा हैं जिन्होंने अपने जुनून और जज्बे से पेंटिंग में एक नया मुकाम हासिल कर लिया है।
वर्ष 2013 में आत्माराम सनातन धर्म कॉलेज से हिंदी से स्नातक करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के पास किराये के छोटे से मकान में रहते हुए अरविंद अपना ज्यादातर समय पेंटिंग में ही दे रहे हैं। इस व्यस्त और भागदौड़ भरी दुनिया में जहां लोग अपना बचा खुचा समय वाट्सएप जैसे आभासी दुनिया में निकाल दे रहे हैं वहीं, अरविंद लकड़ी के फ्रेम पर कूंची से रंग भरकर अपनी कला का प्रदर्शन इस तरह करते हुए देखे जा सकते हैं मानों जैसे उन्होंने किसी दृश्य को अपने हुनर से सजीव बना दिया हो। आप उनके कमरे में लगे पेंटिंग को निहार भर लें तो आपको प्रकृति और मानव के संबंधों का ज्ञान तो होगा ही और बार-बार आपको उसे देखने का मन करेगा।
अरविंद मूलरूप से गाजीपुर जिले के धर्मागतपुर गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने पेंटिग करने की कला बचपन से ही सीख ली थी। दिल्ली आने के बाद जहां ज्यादातर लोगों का सपना स्नातक करने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना होता है वहीं, वह अपना लक्ष्य शुरू से ही पेंटिंग ही मानते हैं और उसके लिए वह कोई भी तैयारी और नौकरी को वरीयता नहीं देते। बड़े आत्मविश्वास से उन्हें कहने में जरा भी दिक्कत नहीं होती कि वह कला से अपनी मंजिल हासिल करना चाहते हैं। कला से ही वह अपनी जिंदगी के हर सुख-दुख में रंग भरकर ऊर्जावान बने हुए हैं। अरविंद की पेंटिंग प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित है। वह प्रकृति से विभिन्न चीजों को जोड़कर ऐसी कला को कागज और कैनवास पर बड़े सरल ढंग से उकेर देते हैं, जो मन को छू लेता है। उसमें विज्ञान, कला, अर्थशास्त्र जैसे हर विषयों का समावेश होता है।
एक सवाल के जवाब में कि आपका इस पेंटिंग में भविष्य कितना उज्ज्वल है। अरविंद इसका उत्तर देते हुए हंसते हुए कहते हैं कि मेरी पेंटिंग का लोकार्पण प्रगति मैदान, दिल्ली में हुआ। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज, किरोड़ीमल कॉलेज और सुंदरलाल जैन अस्पताल के ऑडिटोरियम में मेरी प्रदर्शनी लगी। पिथौरागढ़ में भी मेरी कला लोगों तक प्रदर्शनी के माध्यम से पहुंची। मेरी पेंटिंग को कई पत्रिकाओं जैसे समसामयिक सृजन और भिंसार के कवर पेज पर जगह भी मिलती है। पुरस्कार और सम्मान के बावजूद अगर इसके लिए सरकार आर्थिक रूप से सहयोग नहीं देती तो भी हम जैसे कलाकार को अपना वजूद बनाए रखने के लिए इसकी लगातार जरूरत है कि हम लोगों के जीवन में इसके माध्यम में रंग भरते रहें, भले ही भविष्य में खुद आबाद हों या बर्बाद इसकी फिक्र नहीं है। लेकिन मेरा भविष्य यही है।

हंसराज कॉलेज की प्राचार्या डॉ रमा के साथ अरविंद और उनकी पेंटिंग
आप यूँही निरंतर आगे बढ़ते रहे।
अद्भुत।
बहुत शुभकामनाएँ।
Thanku. Aap sab logo ki wjah se to yaha tak pahucha hu.
Dhanyawad app logo ka aap logo ki wajah se hi mai aaj yaha tak pahucha hu.
बहुत ही अच्छी शुरुवात । इससे मनुष्य और प्रकृति के बीच के संबंध को समझने और उसका संरक्षण करने का एक कदम है ।