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कविताः एक कप कॉफी, एक खाली शाम

सांकेतिक तस्वीर, गूगल साभार

-ऋतु

एक शाम बिताने की ख्वाहिश है तुम्हारे साथ

और एक कप कॉफी की चाहत है तुम्हारे साथ

 

नहीं, प्रेमी-प्रेमिका की तरह बिल्कुल नहीं

एक दूसरे की आंखों में देखते हुए भी नहीं

एक शाम चाहिए,

गर्म कॉफी के कप सी गुनगुनी सी शाम

भीड़ में भी सुकून भरी तन्हाई सी शाम

 

एक शाम चाहिए,

कैफे के बाहर दौड़ती, अनगिनत गाड़ियों के पहियों में

जिंदगी की रफ्तार को देखती हुई शाम

काले, मखमली बादलों में, सिंदूरी धागे बुनती हुई शाम

ऐसी ही एक शाम बिताने की ख्वाहिश है तुम्हारे साथ

 

तुम कुछ मत सुनना, मैं कुछ कहूंगी भी नहीं

बिन कुछ कहे और सुने,

कॉफी के बिल को बांट लेंगे आधा-आधा

जीवन की जिम्मेदारियों की तरह

और फिर देर तक महसूस करते रहेंगे

कॉफी के अरोमा में डूबी, महकी सी शाम

ऐसी ही बेवजह सी,

एक शाम बिताने की ख्वाहिश है तुम्हारे साथ

(यह रचना ऋतु केवरे ने लिखी है, जो मध्य प्रदेश में पुलिस उपाधीक्षक के पद पर कार्यरत हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

1 Comment on "कविताः एक कप कॉफी, एक खाली शाम"

  1. Very heart touching poem

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