जय हो तुम्हारी,
विजय हो तुम्हारी,
कदम-कदम पर बनने वाले बाधक!
जय हो, विजय हो,
हर पल में अपराजय हो तुम्हारी।
क्योंकि,
जब होगी जय तुम्हारी,
जब होगी विजय तुम्हारी,
तब-तब मेरा साहस खुद जागेगा,
मेरा पराक्रम खुद हिलोरे लेगा,
संकल्प की दृढ़ता का उत्कर्ष होगा,
तब निश्चित ही मेरा स्वाभिमान
कुछ नया सृजन करेगा।
जब तुम्हारा हर पल अपराजय होगा,
तो मेरे भीतर का हौसला ‘मुझे’ ललकारेगा,
मेरी क्षमताओं का ‘जामवंत’ बनेगा,
‘शेष’ से ‘विशेष’ की ओर ले जाएगा,
मेरे पथ के बाधक!
इसीलिए
जय हो, विजय हो,
हर पल में अपराजय हो तुम्हारी।
(रचनाकार अभिजात कांडपाल ‘निडर’ हैं जो युवा पत्रकार हैं और साहित्य में गहरी रुचि रखते हैं)
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