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जावड़ेकर ने डीयू के कुलपति को शिक्षकों के खाली पदों को भरने का दिया निर्देश

मानव संसाधन विकास मंत्री  प्रकाश जावड़ेकर ने दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति को निर्देश देते हुए कहा है कि शिक्षकों के रिक्त पदों को तत्काल प्रभाव से भरा जाए। गौरतलब हो कि 5 मार्च के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से सर्कुलर जारी होने के बाद हुए रोस्टर प्रणाली में बदलाव के कारण आरक्षण पदों में कटौती को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का बहिष्कार किया था। ऐसे में मामले की गंभीरता को देखते हुए कुलपति को दिया गया यह निर्देश काफी अहम है।

पहल का किया स्वागत

डीयू विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन ‘ने जावड़ेकर के इस पहल का स्वागत करते हुए बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में 50 से 60 फीसद सीटें शिक्षकों की पिछले दस साल से खाली पड़ी हुई हैं। उनका कहना है कि अकेले दिल्ली विश्वविद्यालय में 4500 एडहॉक शिक्षक विभिन्न कॉलेजों में कार्यरत हैं।इसी तरह से डीयू के विभागों में लगभग 500 पद खाली हैं।

विश्वविद्यालयों में कोटे की सीटें हैं खाली

प्रो सुमन के अनुसार विश्विद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार कॉलेज और विश्विद्यालयों में कुल 14.7 लाख शिक्षक हैं। इनमें से 13.08 लाख कॉलेज में और 1.6 लाख विश्विद्यालयों में शिक्षक हैं। यह रिपोर्ट 30 केंद्रीय विश्विद्यालयों और 82 राज्यों के सरकारी विश्विद्यालयों में श्रेणी आधारित एससी, एसटी और ओबीसी के शिक्षकों की स्थिति भी प्रस्तुत करती है। यह रिपोर्ट बताती है कि प्रोफेसरों के कुल 31 हजार 446 पद हैं, इसमें एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसर शामिल हैं। 31,446 में से 9,130 पदों पर एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के शिक्षक हैं। यह कुल पदों का 29.03 प्रतिशत है। जबकि इन सभी वंचित समुदायों का आरक्षण 49.5 प्रतिशत है। आरक्षित वर्ग के कुल 9,130 शैक्षिक पदों में 7,308 (80 फीसद) अस्टिटेंट प्रोफेसर, 1,193 (13.06 फीसद) एसोसिऐट प्रोफेसर और मात्र 629 (6.9 फीसद) प्रोफेसर हैं। यह रिपोर्ट कॉलेजों में शैक्षिक पदों की आरक्षित वर्गों की स्थिति के बारे में कुछ नहीं कहती, लेकिन कोई भी इस बात का अंदाज लगा सकता है कि इनके हालात कुछ ज्यादा बेहतर नहीं हैं।

आरक्षण का आधार अब कुल सीट नहीं

अब देशभर के विश्वविद्यालयों व उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की भर्ती में एससी, एसटी व ओबीसी आरक्षण का आधार कुल सीट नहीं, बल्कि विभागों में उपलब्ध खाली सीटों पर किया जाएगा। केंद्र सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को मंजूरी दे दी है, जिसमें कहा था कि आरक्षण संस्थान की कुल सीट नहीं, बल्कि विभाग के आधार पर होना चाहिए। खास बात यह है कि आरक्षण का आधार विभाग होने से आरक्षित सीटों की संख्या कम हो जाएगी।

गौरतलब हो कि पहले उच्च शिक्षण संस्थानों में कुल खाली सीटों के आधार पर एससी-15 फीसद, एसटी -7.5 फीसद और ओबीसी को- 27 फीसद आरक्षण के तहत नौकरी दी जाती थी। लेकिन, अदालत के फैसले के बाद नए नियम में विभाग में कुल खाली पदों को आरक्षण फीसद से गुणा किया जाएगा।

आरक्षण नियमों में होगा बदलाव

आपको बता दें कि अदालत ने फैसले में टिप्पणी की थी कि यूजीसी विश्वविद्यालयों व उच्च शिक्षण संस्थानों में अपारदर्शी तरीके से आरक्षण नियमों को पूरा करता है। इसलिए सलाह दी जाती है कि वे आरक्षण नियमों में बदलाव करें।

अब आरक्षण वर्ग के शिक्षकों को अधिक लाभ नहीं

सरकारी आंकड़े के मुताबिक, 41 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एक अप्रैल 2017 तक 5997 पद खाली थे। इसके तहत करीब 35 फीसद शिक्षकों के पद खाली थे। इन खाली पदों के आंकड़ों के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर वर्ग में 2457 पद, एसोसिएट प्रोफेसर वर्ग में 2217 पद और प्रोफेसर वर्ग में 1098 पद हैं। यानी पहले कुल 5997 खाली पदों पर आरक्षण नियम में शिक्षकों की भर्ती होनी थी, लेकिन नए नियम में अब प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर पद पर अलग-अलग खाली पदों पर आरक्षण के तहत भर्ती की जाएगी। इसके चलते अब आरक्षण वर्ग के शिक्षकों को अधिक लाभ नहीं मिल पाएगा।

डूटा की क्या है मांग

प्रो सुमन ने यूजीसी व एमएचआरडी मंत्री से मांग की है कि दिल्ली विश्वविद्यालय व देशभर के विश्वविद्यालयों में 5 मार्च के यूजीसी सर्कुलर पर परमानेंट अपॉइंटमेंट न करें, क्योंकि अभी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को केवल उन पदों पर नियुक्ति के निर्देश दिए जायें जो 5  मार्च से पहले पद विज्ञापित हो चुके हैं और उनकी स्क्रीनिंग व स्कुटनी की जा चुकी है। उन पदों को भरने के लिए मंत्रालय व यूजीसी विश्वविद्यालय को निर्देश जारी करें।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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