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poem

कविताः बूढ़ा पीपल

-रेवा बहुत खुश था वो गांव के चौराहे पर खड़ा बूढ़ा पीपल,   बरसों से खड़ा था अटल सबके दुःख सुख का साथी लाखों मन्नत के धागे खुद पर ओढ़े हुए, कभी पति की लम्बी…


कविताः निश्छल प्रेम 

– धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया न जाने कहाँ रहते हैं वो लोग जो करते हैं बहुत सारा स्नेह किसी से बेशर्त कब आते हैं, कैसे आयेंगे, किसको स्नेह करने आयेंगें ? पता है क्या ?  …


कविताः भगवे और हरे को मिला एक नया रंग बना दें

-दिगम्बर नासवा रंगों के नए अर्थ … चलो रंगों को नए अर्थ दें नए भाव नए रंग दें   खून के लाल रंग को पानी का बेरंग रंग कहें (रंगों की विश्वसनीयता बरकरार रखने के…


कविताः एक कप कॉफी, एक खाली शाम

-ऋतु एक शाम बिताने की ख्वाहिश है तुम्हारे साथ और एक कप कॉफी की चाहत है तुम्हारे साथ   नहीं, प्रेमी-प्रेमिका की तरह बिल्कुल नहीं एक दूसरे की आंखों में देखते हुए भी नहीं एक…