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कविताः बूढ़ा पीपल

तस्वीरः गूगल साभार

-रेवा

बहुत खुश था

वो गांव के

चौराहे पर खड़ा

बूढ़ा पीपल,

 

बरसों से खड़ा था अटल

सबके दुःख सुख का साथी

लाखों मन्नत के

धागे खुद पर ओढ़े हुए,

कभी पति की लम्बी उम्र

कभी धन की लालसा

कभी क़र्ज़ वापसी

तो कभी अच्छी फ़सल

बेटी का ब्याह

बेटे की चाह

और न जाने क्या-क्या

 

पर पहली बार

किसी ने अपने लिए

एक नन्ही कली की

मन्नत मांगी,

तो पीपल को लगा

उसका जन्म सफल

हो गया इस धरती पर…

 

लेकिन, आज वो ज़ार-ज़ार रोया

जब उस नन्हीं कली को

चिथड़ों और

वह्शाना निशानों के साथ

अपने पास बैठ बिलखते

हुए देखा…

(रेवा जी प्यार नाम से ब्लॉग लिखती हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

1 Comment on "कविताः बूढ़ा पीपल"

  1. वाह … जितने प्‍यारे शब्‍द उतना ही प्‍यारा सा वर्णन … अनुपम

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