कविताः पंछी पपीहा की व्यथा
वृक्ष धरा के हैं आभूषण, करते हैं नित दूर प्रदूषण अखिल विश्व के जीवन में नित जीवन रक्षक वायु बहाते सुंदर छाह पथिक को देते, राहगीर भी चलते-फिरते शरणागत हो जाते इनके। कवि चन्द्रशेखर तिवारी…
वृक्ष धरा के हैं आभूषण, करते हैं नित दूर प्रदूषण अखिल विश्व के जीवन में नित जीवन रक्षक वायु बहाते सुंदर छाह पथिक को देते, राहगीर भी चलते-फिरते शरणागत हो जाते इनके। कवि चन्द्रशेखर तिवारी…
बात-बात में निकलते, साला-साली शब्द। देवनागरी हो रही, देख-देख निःशब्द।। अगर मनुज के हृदय का, मर जाये शैतान।, फिर से जीवित धरा पर, हो जाये इंसान।। कमी नहीं कुछ देश में, भरे हुए…
देखो सरहदें अभी भी गुनगुनी सी हैं उबलने से पहले उसमें ‘मुहब्बत की फाँके घोल दो’ क्या ग़ैर तुम, क्या ग़ैर हम चलो, रात आने से पहले ‘इस गिरह के टाँके खोल दो’ दीवारें उम्मीद…