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सत्ता स्वार्थी हो चली है (कविता)

सांकेतिक तस्वीरः गूगल साभार

-पूजा कुमारी

सत्ता की रस्म हो चली है

हर त्योहार पर उपहार

त्योहार कैसा? उपहार कैसा?

 

इज्जत लूटने का त्योहार हो

तो लाख टके का उपहार

जीवन जाने का त्योहर हो

तो लाख टके का उपहार

दुर्घटना होने का त्योहार हो

तो लाख टके का उपहार

 

आखिर क्यों?

सत्ता स्वार्थी हो चली है

गुंडों का रोजगार हो चली है

लालची बनिये का दुकान हो चली है

इंसानियत बेच वोट का व्यापार हो चली है

 

लेकिन,

यह त्योहार बदलेगा उपहार बदलेगा

जब जनता का मन बदलेगा

मंदिर-मस्ज़िद, जात-पात छोड़

इंसान को इंसान समझेगा

फिर यह त्योहार बदलेगा उपहार बदलेगा

 

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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