जब प्रयास विनम्रता के सारे असफल हो जाएं
द्वार देवताओं के प्रार्थनाएं सारी अनसुनी हो जाएं
तो बंधन मनुहार के तोड़ देना, वक़्त की मांग है
निभाते रहे हम ही रीत सदा प्रीत की
हारकर स्वयं को, मांगते रहे दुआ उनकी जीत की
पर जब समर्पण ही, हमारा पाप हो जाए
हक़ में पढ़ी उनके जो दुआएं, अभिशाप हो जाएं
तो माला प्यार की तोड़ देना, वक़्त की मांग है
उनकी हर झूठी बात को भी सच बताते रहे
घड़ियाली आंसुओं में भी विश्वास जताते रहे
पर जब विश्वास ही, हमारा विभीषण हो जाए
गांधारी सा व्यवहार, समर में दुर्योधन हो जाए
तो घड़ा भक्ति का तोड़ देना, वक़्त की मांग है
उनकी एक आवाज़ पे दौड़े चले आएं हम हज़ारों में
उनकी एक बात पे, आपस में भिड़ गये हम बेकारों में
पर जब ये अज्ञान ही हमारा विनाशक हो जाए
हम रहे ग़ुलाम और जिनको पूजा वो शासक हो जाएं
तो व्यर्थ की ये वर्जनाएं तोड़ देना, वक़्त की मांग है
-चारागर
(डॉ. संजय ‘चारागर’ पेशे से चिकित्सक हैं। कविता-पाठ में रुचि रखते हैं)
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