कल सात नवंबर था, यानी 2018 का दीपावली वाला दिन। सब रोशन-रोशन, जगमग-जगमग था। आज 8 नवंबर है। 8 नवंबर मतलब? मतलब देश का काला दिन। काला दिन इसलिए नहीं कि पटाखों के धुएं ने सब धुंधला कर दिया है। पिछले बरस के मुकाबले तो कम धुआं है। काला दिन इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र सिंह मोदी ने साल 2016 में आज ही के दिन खुद अपने मुंह से अपनी काली करतूत की घोषणा की थी, जिसे अगले दिन यानी 9 नवंबर को अंजाम दिया गया। इसके बाद वो और उनकी अफ़सरशाही इस तरह की और करतूतों को अंजाम देते रहे। अब भी दे रहे हैं। साल 2019 में भी देने का इरादा है। क्या? शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, किसानों को राहत के बदले राम मंदिर देने का। हो सकता है उनके ज़ेहन में दूसरी बार नोटबंदी करने का भी इरादा हो! क्या पता! पिछली बार भी कहां पता था! वैसे भी मोदी जी, उनकी पार्टी और उनकी अफ़सरशाही इसे सफेद दिन मानती है, दूध की तरह सफेद। पर अब सब दूध का दूध और पानी का पानी हो चुका है। यह वे सब देशभक्त (जो देश-प्रेम के नाम पर हर ज़्यादती बर्दाश्त करते रहे) जानते हैं जिन पर नोटबंदी का कहर ढाया है।
ख़ैर, काला दिन इसलिए नहीं है कि नोटबंदी की गई या नोटबंदी असफ़ल रही। नोटबंदी इतनी ही बुरी चीज़ होती तो पहले भी वही सब होना चाहिए था जो 2016 में हुआ। प्रधानमंत्री मोदी भारत में नोटबंदी के जन्मदाता नहीं हैं। लेकिन, भारत में नोटबंदी के कुप्रभावों के जन्मदाता ज़रूर हैं।
8 नवंबर 2016 को पहली दफ़ा नोटबंदी लागू नहीं की गई थी। इससे पहले भी दो दफ़ा नोटबंदी लागू की गई। एक बार और नोटबंदी जैसा कुछ करने की कोशिश की गई थी जिसकी बीजेपी ने बहुत निंदा की थी।
अंग्रेज़ों के राज में लागू की गई थी पहली नोटबंदी
पहली नोटबंदी देश के आज़दी के डेढ़ वर्ष पूर्व जनवरी 1946 में लागू की गई थी। उस दौरान अधिकतम 10,000 रुपये के नोट हुआ करते थे जो रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने पहली दफ़ा 1938 में लागू किए थे। जनवरी 1946 में 1000, 5000 और 10,000 के नोटों पर नोटबंदी लागू की गई थी। बाद में 1954 में इन तीनों नोटों को फ़िर से इस्तेमाल में लाया गया।
जनता दल के राज में की गई थी दूसरी नोटबंदी
1970 के शुरुआती दौर मे काले धन से निजात के लिए बनाई गई वांचू कमेटी ने कुछ बैंक नोटो को रद्द किए जाने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन बहुत ज़्यादा शोर शराबा हो गया, इसलिए इसे लागू नहीं किया जा सका।
बाद में एक वर्ष पूर्व ही सत्ता में आई जनता दल ने 1978 में दूसरी दफ़ा नोटबंदी लागू की। 16 जनवरी की सुबह एक अध्यादेश पारित करते हुए 1000, 5000 और 10,000 के नोट बंद कर दिए गए। दूसरी नोटबंदी का रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडियाज़ हिस्ट्री के तीसरे खण्ड में विस्तार से वर्णन मिलता है। 16 जनवरी को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से सुबह 9 बजे नोटबंदी की घोषणा की और अगले दिन यानी 17 जनवरी से 1000, 5000 और 10,000 के नोट कागज़ बन गए।
साल 2014 में कांग्रेस पार्टी ने नोटबंदी जैसी कोई हरकत करने की कोशिश की थी। हालांकि इसे पूरी तरह से नोटबंदी नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस ने ऐलान किया था कि 2005 से के पूर्व प्रिंट हुए 500 रुपये के नोटो का इस्तेमाल बंद किया जाएगा। इसके लिए उन्होंने जनता को एक निश्चित तारीख़ तक इन नोटो को बैंक से बदलने की हिदायत दी थी। बीजेपी ने बड़ा हंगामा किया था। मीनाक्षी लेखी ने इसे ग़रीबों के विरुद्ध नीति बताया था।
तीन दफ़ा नोटबंदी लागू हुई, फ़िर मोदी वाली से ही इतनी चिढ़ क्यों?
भारत में तीन दफ़ा नोटबंदी लागू की गई। इनमें से कोई भी नोटबंदी सफ़ल नहीं रही। अब मोदी और उनके भक्त कहेंगे कि इतनों ने लागू की। उनको तो कुछ नहीं कहा! मोदी की बारी में हर साल उन्हें कोसने आ जाते हैं!
पिछली दो दफ़ा जब नोटबंदी की गई थी तो उसका कोई ख़ास असर नहीं हुआ। काले धन से निजात नहीं मिला। लेकिन आम जन पर भी उसका इतना भयानक असर नहीं हुआ था। भला किस आम व्यक्ति के पास 5000, या 10,000 के नोट होते होंगे! जो थोड़ा बहुत असर हुआ भी, तो वो अमीरों पर हुआ! काला धन तो वापिस नहीं आया, लेकिन नवंबर 2016 की नोटबंदी की तरह देशभक्ति के नाम पर आम लोगों की जाने नहीं ली गईं और न ही मौलिक अधिकारों का हनन किया गया। संविधान को ताक़ पर रख़कर मन-मर्जी कोई भी नियम लागू नहीं किए गए। कईयों की ज़िंदगियां तबाह नहीं हुईं। लोगों ने आत्महत्याएं नहीं कीं।
2016 की नोटबंदी में ये सब कुछ हुआ। भला विकास के नाम पर ऐसा नियम कैसे लागू किया जा सकता है जिसकी कीमत समाज के सबसे दरिद्र लोग चुकाएं। वो लोग जिनके पास काला नहीं, ख़ून पसीने से कमाया गया गीला धन है।
इतिहास में दो चीज़ें बड़ी जल्दी दर्ज हो जाती हैं। एक तब, जब कुछ अच्छा हुआ हो और दूसरा तब, जब बहुत बुरा हुआ हो। मोदी वाली नोटबंदी बड़ी जालिम थी। बहुत बुरा किया उसने आम लोगों के साथ। उसे हर साल कोसा जाएगा। इस साल कोसना और भी ज़रूरी था। अगले साल चुनाव जो है। राम मंदिर के खंभों के नीचे नोटबंदी की कमियां नहीं दबनी चाहिए। मोदी और बीजेपी इस पर चाहे कितना ही सफ़ेद रंग-रोगन लगा लें, 8 नवंबर काला दिन था, काला दिन है और काला दिन रहेगा। मोदी और उनकी पार्टी काले धन वालों पर तो कालिख़ न पोत सकी, ख़ुद का मुँह ज़रूर काला कर लिया है, इतिहास में!
द न्यूज मिनट, द फ्री प्रेस जरनल और लाइव मिंट के प्रति आभार सहित
-सुकति गुप्ता
(प्रस्तुत लेख में लेखिका के निजी विचार हो सकते हैं। इसके लिए फोरम4 का सहमत होना जरूरी नहीं है)
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