दिल्ली विश्वविद्यालय के निकट कल्याण विहार में आयोजित कार्यक्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय एससी, एसटी ओबीसी टीचर्स फोरम ने 7 नवंबर को विद्यार्थी दिवस के रूप में हर साल मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। बता दें कि 7 नवम्बर 1900 को संविधान निर्माता भारत रत्न बाबा साहेब डा. भीमराव आंम्बेडकर का सतारा हाईस्कूल महाराष्ट्र मे पहली कक्षा मे नामांकन (दाखिला) हुआ था और पहली बार विद्यालय गए थे। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने जिस दिन स्कूल में प्रवेश लिया था उस दिन को यादगार बनाने के लिए “विद्यार्थी दिवस” के रूप में मनाया गया। इस दिन को विद्यार्थी दिवस के रूप में घोषित कराने की मांग को लेकर केंद्र सरकार को एक पत्र भी लिखा गया है।
विद्यार्थी दिवस के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग में प्रोफ़ेसर पीडी सहारे ने कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए कहा कि एससी, एसटी में शिक्षा का प्रारम्भ ही बाबा साहेब के स्कूल में प्रवेश से हुआ है इसलिए इस दिन को बहुत महत्त्व माना गया है आगे चलकर शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए भारत के संविधान में प्रावधान किया। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि शिक्षा का अधिकार (कानून) लाकर इसे एससी, एसटी, ओबीसी के छात्रों की सभी स्तर पर फीस माफ और स्कॉलरशिप देकर पहली कक्षा से पीएचडी तक निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान सरकार की ओर से किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि ऐसा करने से आरक्षित श्रेणी के छात्रों को आरक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और शिक्षा के क्षेत्र में वे किसी से पिछड़ेंगे नहीं।
फोरम के चेयरमैन व विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन’ ने बताया है कि 7नवम्बर 1900 को डॉ भीमराव आंबेडकर जी ने प्रतापसिंह हाई स्कूल राजवाड़ा चौक सतारा में पहली कक्षा में दाखिला लिया था। स्कूल रजिस्टर में 1914 क्रमांक पर बालक भीवा का नाम दर्ज है। जो आज भी स्कूल प्रशासन के पास सुरक्षित है। बाबा साहेब का स्कूल में दाखिला एक क्रांतिकारी कदम बताया है यदि वे शिक्षित नहीं होते तो कैसे इस समाज की पीड़ा को महसूस कर संविधान में अधिकार दिलाते। इसलिए उन्होंने शिक्षा को शेरनी का दूध कहा है जो पीयेगा वहीं दहाड़ेगा।
प्रो. सुमन ने सरकार से मांग की है कि प्रति वर्ष 7 नवम्बर का दिन “विद्यार्थी दिवस” के रूप में मनाया जाए ताकि वंचित समाज के लोगों में शिक्षा का प्रचार प्रसार हो सके।
इस अवसर पर डीयू की डिप्टी डीन डॉ. गीता ने कहा कि आज का दिन अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए तो महत्वपूर्ण है ही साथ ही डॉ आंबेडकर ने महिला शिक्षा पर भी जोर दिया है। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा का पाठ माता सावित्रीबाई फुले से सीखा। इसलिए उन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया है और कहा है कि एक महिला पढ़ती है तो पूरा परिवार पढ़ता है। डॉ. गीता ने प्रस्ताव रखा है कि प्रति वर्ष 7 नवम्बर को महिला शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देने वाली महिलाओं को सम्मानित किया जाए ताकि शिक्षा का प्रचार प्रसार बढ़े और महिलाएं शिक्षित हो। डॉ. गीता ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय में महिलाओं के कार्यकर्मों में माता सावित्री बाई फुले, माता रमाबाई, झलकारी बाई आदि के विषय में जानकारी दी जाती है। कार्यक्रम में डॉ अनिल काला, डॉ कमल किशोर और डॉ रूप चंद गौतम ने भी अपने विचार रखे।
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