-रचना दीक्षित
बचपन,सपने, यादें, विरासत
छोड़ आई थी,रख आई थी, सहेज आई थी
अपने घर की
दहलीज़ के भीतर कभी
ढूंढती हूँ, खोजती हूँ,
टटोलती हूँ, तलाशती हूँ
कहीं भी कुछ भी
जब तब
पूंछते हैं वो
क्या खोजती?
यहाँ कहाँ खोजती हो?
कैसे कहूँ उनसे
क्या खोजती हूँ
कोई नहीं जानता
क्या खोजती हूँ
खोजती हूँ
रोशनी
सुना है
उस दहलीज़ के भीतर
गहन अंधकार है।
(कवयित्री ब्लॉगर भी हैं, अपने ब्लॉग रचना रवीन्द्र पर 2009 से ही आप लिखती रही हैं)
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