-सुकृति गुप्ता
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में बुधवार को एमफिल/पीएचडी के दाखिले में हो रही मनमानी को लेकर 20 छात्र अनशन पर बैठ गए। पूरे दिन छात्र अनशन पर बैठे रहे और इस बीच इन छात्रों के समर्थन में कई अन्य छात्र भी समर्थन देने कला संकाय के गेट नंबर 4 के सामने पहुंच गए। छात्र मांग कर रहे हैं कि यूजीसी विद्यार्थियों और उच्च शिक्षा खासकर शोध के खिलाफ बनाए जा रहे नियमों का पर रोक लगाए।
लगातार कई दिनों से हो रहे हैं विरोध प्रदर्शन
आपको बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछले कई दिनों से एमफिल/पीएचडी के दाखिले की प्रक्रिया को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इसी क्रम में यह अनशन भी किया गया। इसमें मुख्य रूप से फिरोज़ आलम, दीपक, सचिन देव, आकृति, भूपेंद्र, आसिम, शालू भीम बिलाल आरती, दिवाकर, ज्योति, सुशील, प्रिया, सुमित आदि शामिल रहे।

फोटो आभारः सुमित कटारिया
इससे पूर्व 25 जुलाई को भी इतिहास विभाग में साक्षात्कार के दौरान विरोध प्रदर्शन किया गया था। वहीं 27 जुलाई को भी कला संकाय में विवेकानंद प्रतिमा के पास अलग-अलग विभागों के करीब 100 उम्मीदवारों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। छात्रों का कहना है कि इस मामले को लेकर उन्होंने डीन ऑफ स्टूडेंट्स वेलफेयर को भी पत्र लिखा था लेकिन, उन्होंने तवज्जो नहीं दी इसलिए वे आंदोलन जारी रखेंगे। छात्रों का कहना है कि जब तक यूजीसी उनकी मांगे नहीं मान लेता आंदोलन जारी रहेगा।
आखिर क्यों हो रहा है यह विरोध
यूजीसी एमफिल/पीएचडी को लेकर छात्र हित में नियमों में तत्काल बदलाव करे, इसके लिए छात्रों की ओर से मांग की गई कि उस अध्यादेश VI को पूरी तरह हटा दिया जाए, जिसके तहत एमफिल/पीएचडी की प्रवेश परीक्षाओं में पास होने के लिए न्यूनतम 50 फीसद अंक लाना अनिवार्य कर दिया गया था। जारी की गई पुरानी साक्षात्कार सूची के अनुसार ही साक्षात्कार कराए जाएं। इसके अलावा छात्रों की यह भी मांग है कि लिखित परीक्षा को 80 फीसद तथा साक्षात्कार को 20 फीसद का भार दिया जाए।
विश्वविद्यालय व यूजीसी में तालमेल नहीं
छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय व यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) में कोई ताल-मेल नहीं है, जिसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। यूजीसी के नए नियमों के अनुसार साक्षात्कार में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा में न्यूनतम 50 फीसद अंक लाना अनिवार्य है। यह नियम 2016 से लागू है, जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय 2017 तक इस नियम का अनुसरण नहीं कर रहा था। 2018 में अचानक से विश्वविद्यालय ने इस नियम को लागू कर दिया। वो भी प्रवेश परीक्षाओं के नतीजे आ जाने के बाद।
कई विभागों ने अपने अनुसार प्रवेश परीक्षा में पास होने के लिए न्यूनतम अंक तय कर दिए थे। यहां तक कि इतिहास विभाग और अफ्रीकन विभाग ने सूची भी जारी कर दी थी।
इतिहास विभाग में पुरानी सूची 17 जुलाई को लागू की गई थी। नई सूची साक्षात्कार के महज दो दिन पूर्व 23 जुलाई को लागू की जाती है। कई विद्यार्थी पुरानी लिस्ट के अनुसार साक्षात्कार के लिए विश्वविद्यालय भी आ गए थे। यहाँ आकर उन्हें पता चलता है कि उनका साक्षात्कार रद्द कर दिया गया है। इनमें से कई छात्रों ने दूसरे राज्यों से भी आवेदन किया था। छात्रों का कहना है कि यह मानसिक प्रताड़ना है।
कई छात्रों का यह भी कहना है कि परीक्षा का पैटर्न भी यूजीसी के 2016 के नियमों के अनुसार नहीं था। कायदे से प्रवेश परीक्षा में 50 प्रतिशत प्रश्न रिसर्च आधारित जबकि 50 प्रतिशत विषय आधारित होने चाहिए थे जबकि ऐसा नहीं हुआ। जब विश्वविद्यालय ने इस नियम को नहीं लागू किया तो 50 फीसद वाले नियम को क्यों लागू किया, वो भी इतनी जल्दबाज़ी में।
आरक्षित वर्ग के छात्रों को कोई छूट नहीं
आरक्षित वर्ग के छात्रों को प्रवेश परीक्षा में कोई छूट भी नहीं दी गई थी। इसके कारण भी विरोध प्रदर्शन किया गया था, जिसके चलते यूजीसी के आदेश पर 28 जुलाई को एमफिल/पीएचडी की प्रवेश परीक्षाएँ रद्द किए जाने का आदेश जारी किया गया।
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