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दिल्ली विश्वविद्यालय ने ऐसा क्या किया कि प्रवेश परीक्षा में ज्यादातर छात्र रहे असफल, जानिए क्यों हो रहा ऐसा मजाक

इतिहास विभाग में एमफिल-पीएचडी प्रवेश के लिए साक्षात्कार कराए जाने का छात्र कर रहे विरोध। तस्वीर में जो छात्र खड़ा है वो साक्षात्कार देने आया है, बैठे हुए बच्चों ने उसका रास्ता रोक दिया है। विभागाध्यक्ष अपील कर रहे हैं, उसे अंदर आने के लिए जगह दे दें..

-सुकृति गुप्ता

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में इस बार एमफिल-पीएचडी छात्रों के प्रवेश परीक्षा में 50 फीसद अंक लाना अनिवार्य कर दिया गया। यदि आपके 50 फीसद से कम अंक आए हैं तो आपको साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया जाएगा। इसी क्रम में विरोध-प्रदर्शन भी शुरू हो गया है। 25 जुलाई को इतिहास विभाग की एमफिल प्रवेश परीक्षा हेतु विद्यार्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। जहाँ एक ओर साक्षात्कार की प्रक्रिया चल रही थी, वहीं दूसरी ओर कई विद्यार्थी साक्षात्कार को रोके जाने की मांग कर रहे थे। वे यूजीसी के 50 प्रतिशत वाले नियम का विरोध कर रहे थे। साथ ही उनका आरोप है कि इतिहास विभाग समेत कई विभागों ने एमफिल प्रवेश परीक्षाओं में लापरवाही भी बरती है।

देखें वीडियो में छात्र कैसे कर रहे प्रदर्शन

शुक्रवार 27 जुलाई को भी यूजीसी के इस नए नियम के खिलाफ प्रदर्शन किया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय की आर्ट्स फैकेल्टी में विवेकानंद प्रतिमा के निकट विभिन्न विभागों के करीब 100 उम्मीदवार इकट्ठे हुए और उन्होंने जमकर धरना प्रदर्शन किया। मुख्य रूप से इनका विरोध आरक्षित वर्ग को प्रवेश परीक्षा में छूट न दिए जाने को लेकर था। बाद में एक मीटिंग के ज़रिए डीयू विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज सुमन ने विद्यार्थियों को संबोधित किया और यूजीसी के इस नियम के नकारात्मक प्रभावों का ज़िक्र किया।

क्या है ये 50 वाला नियम

यह नियम कोई नया नहीं है। हालांकि इसमें कुछ बदलाव ज़रूर किए गए हैं। 2016 में ही यूजीसी ने एमफिल/पीएचडी की प्रवेश परीक्षा से जुड़ा एक फरमान जारी किया था। इसके अनुसार नेट/जेआरएफ वाले विद्यार्थियों को पहले की तरह ही सीधे साक्षात्कार में आने की छूट दी गई। वहीं बिना नेट और जेआरएफ वाले विद्यार्थियों की प्रवेश परीक्षा के लिए नए नियम बनाए गए। इसके अनुसार विद्यार्थियों के लिए साक्षात्कार तक पहुँचने के लिए प्रवेश परीक्षा में 50 फीसद अंक लाना अनिवार्य कर दिया गया। हालांकि 2016 वाले नियम में एससी/एसटी/ओबीसी/पीडब्यूडी के विद्यार्थियों को 5 प्रतिशत की छूट दी गई थी जबकि हाल ही में जारी नए नियम के तहत 5 प्रतिशत अंकों की इस छूट को रद्द कर दिया गया है। इसलिए हर वर्ग के उम्मीदवार के लिए 50 प्रतिशत अंक लाना अनिवार्य है।

50 फीसद वाले नियम के क्या हैं नुकसान

हमने इस नए नियम के संबंध में विद्यार्थियों और शिक्षकों से बात की। उनका कहना है कि इस नियम के ज़रिए हर विद्यार्थी को बराबर अवसर नहीं मिल रहा है। इसके ज़रिए नेट/जेआरएफ में उत्तीर्ण विद्यार्थियों को तवज्जो दी जा रही है।

विश्वविद्यालय के पुराने नियमों के अनुसार हर विभाग प्रवेश परीक्षा के नतीजों के आधार पर साक्षात्कार के लिए न्यूनतम अंक तय करता था। पर अब यूजीसी के नए नियमों के अनुसार हर विभाग के लिए साक्षात्कार में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा में न्यूनतम 50 प्रतिशत अंक लाना अनिवार्य कर दिया गया है। ऊपर से नेगेटिव मार्किंग भी रखी गई है। विद्यार्थियों का कहना है कि यह बहुत अधिक है। इस तरह के बंधन तो नेट/जेआरएफ और यूपीएससी की परीक्षा में भी नहीं होते। साथ ही आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों के साथ यह अन्याय है।

प्रवेश परीक्षा के आधार पर ज्यादातर छात्रों का चयन होना मुश्किल

यूजीसी के इस नए नियम से बहुत से विद्यार्थी साक्षात्कार तक पहुँच ही नहीं पा रहे हैं। 50 प्रतिशत अंक लाने में ज़्यादातर विद्यार्थी असफल रहे। उदाहरण के लिए इतिहास विभाग में एमफिल साक्षात्कार के लिए बुलाए गए 109 विद्यार्थियों में से केवल 19 विद्यार्थी ही प्रवेश परीक्षा के द्वारा साक्षात्कार तक पहुँच सकें बाकी 90 विद्यार्थी नेट/जेआरएफ वाले थे। अफ्रीकी विभाग में इनकी संख्या केवल तीन है। अफ्रीकी विभाग में ही पीएचडी में केवल एक विद्यार्थी ही प्रवेश परीक्षा पास कर सका। साउथ-ईस्ट विभाग में एक भी विद्यार्थी प्रवेश परीक्षा में पास नहीं हो सका। होम साइंस में पीएचडी के लिए साक्षात्कार में 50 विद्यार्थियों को बुलाया गया था। इनमें से केवल 6 विद्यार्थी ही प्रवेश परीक्षा के ज़रिए साक्षात्कार में पहुँचे थे। इलेक्ट्रोनिक साइंस में पीएचडी के लिए साक्षात्कार में बुलाए गए कुल 44 विद्यार्थियों में से केवल एक विद्यार्थी ही प्रवेश परीक्षा पास करके पहुँचा था। बी आर अम्बेडकर सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च में साक्षात्कार में बुलाए गए कुल 90 विद्यार्थियों में से प्रवेश परीक्षा द्वारा इंटरव्यू में पहुँतने वाले केवल 3 विद्यार्थी थे। वहीं अभी कई विभागों की इंटरव्यू लिस्ट जारी होना बाकि है। फिलहाल कुछ विभागों के एमफिल परीक्षा के आंकड़े मौजूद हैं जो हाल बयाँ कर रहे हैं-

 

  विषय कुल उम्मीदवार प्रवेश परीक्षा पास करने वाले  कुल सीटें
  गणित    191     2    23
  भूगर्भशास्त्र     28     0    25
 सोशल वर्क    68     2    20
 वनस्पति

विज्ञान

   35     0    14
 पर्शियन    18     0    15
 सांख्यिकी    38     0    8
 इतिहास    453     19    25
  राजनीतिक

विज्ञान

   605     71    25
 अर्थशास्त्र    104     8     5
  भूगोल    121     49     17
  हिन्दी    606    135     26
  अंग्रेज़ी    516     81     35
 एंथ्रोपोलॉजी    42     5     13
 जीव विज्ञान    48     4     25
समाज-शास्त्र     202     27     12

 

विद्यार्थियों का कहना है कि इन आंकड़ों से स्पष्ट जाहिर होता है कि एमफिल/पीएचडी के लिए प्रवेश परीक्षा कराए जाने का कोई अर्थ नहीं रह गया है। प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए तय किया गया पैमाना ठीक नहीं है। यह परीक्षा के नतीजों और हर विभाग के अपने विषय के अनुरूप तय होना चाहिए। इसलिए वे साक्षात्कार रोकने की मांग कर रहे हैं। प्रो सुमन का कहना है कि अगस्त माह में होने वाले साक्षात्कार को यदि नहीं रोका गया तो विभागों में जाकर इसका विरोध किया जाएगा।

विभाग ने बरती लापरवाही

कई विद्यार्थियों का आरोप है कि विश्वविद्यालय और यूजीसी के बीच तालमेल ठीक नहीं है, इसलिए कई विभागों ने लापरवाही भी बरती है। विद्यार्थियों का आरोप है कि 2017 तक हर विभाग पुराने नियमों के अनुसार ही एमफिल/पीएचडी के साक्षात्कार करवाता रहा। ये नियम अचानक से लागू कर दिए गए। पहले हर विभाग साक्षात्कार के लिए परीक्षा के नतीजों के अनुसार न्यूनतम अंक खुद तय करता था जो कि ज़्यादातर 50 प्रतिशत से कम ही होता था। विभागों द्वारा या विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षा से पूर्व इस तरह का कोई नोटिस नहीं डाला गया कि वह यूजीसी के नए नियम के अनुसार साक्षात्कार करवाएगी। ऐसे में वे विद्यार्थी जिन्होंने परीक्षाएं दीं, उन्हें यह बात स्पष्ट नहीं थी कि उन्हें प्रवेश परीक्षा में न्यूनतम 50 प्रतिशत अंक लाना अनिवार्य है। हमने उन विद्यार्थियों से भी बात की जो 50 प्रतिशत से अधिक अंक ला पाए। उनका भी यही कहना है कि उन्हें भी यह बात स्पष्ट नहीं थी। एक विद्यार्थी ने यह भी कहा कि उसे अपने विभाग से यही जानकारी मिली थी कि दाखिले पुराने नियमों के अनुसार ही होंगे। मतलब विभाग अपने अनुसार न्यूनतम अंक तय करेगा।

कई विभागों ने परीक्षा के नतीजों के अनुसार साक्षात्कार के लिए न्यूनतम अंक तय कर दिए थे और उसके अनुसार साक्षात्कार के लिए विद्यार्थी की सूची भी जारी कर दी थी। इनमें वे विद्यार्थी भी थे जिनके 50 प्रतिशत से कम अंक थे। बाद में दबाव पड़ने पर यूजीसी के नए नियम के अनुसार लिस्ट जारी की गई। इतिहास और अफ्रीकन विभाग में ऐसा ही हुआ। इससे संबंधित जो नोटिस जारी किए गए, वो हम दिखा रहे हैं।

अफ्रीकन विभाग का 16 जुलाई का नोटिस जिसमें सामान्य वर्ग के लिए न्यूनतम अंक 28 प्रतिशत तथा आरक्षित वर्ग के लिए 23 प्रतिशत तय किया गया था

अफ्रीकन विभाग में 16 जुलाई के नोटिस में पीएचडी के साक्षात्कार के लिए न्यूनतम अंक 40 प्रतिशत (सामान्य वर्ग) और 35 प्रतिशत (आरक्षित वर्ग) रखा गया था। बाद में इसे रद्द करते हुए न्यूनतम अंक 50 प्रतिशत तय किया गया।

 

16 जुलाई के नोटिस को 19 जुलाई को रद्द कर दिया गया और एक नया नोटिस जारी करते हुए न्यूनतम अंक 50 प्रतिशत रखा गया

इतिहास विभाग का 17 जुलाई का नोटिस, इसके आधार पर इतिहास विभाग ने साक्षात्कार सूची भी जारी कर दी थी बाद में उस सूची को रद्द करके साक्षात्कार के दो दिन पहले 23 जुलाई को यूजीसी के 50 फीसद वाले नियम के अनुसार नई सूची जारी की गई।

इतिहास विभाग तथा अफ्रीकन विभाग के कई विद्यार्थी पुरानी लिस्ट के अनुसार साक्षात्कार देने भी पहुँच गए थे। वहाँ जाकर उन्हें नई लिस्ट के बारे में पता चला। ऐसे में छात्रों का कहना है कि उन्हें विभाग के ऐसे रवैये से असुविधा हुई। साथ ही यह बात भी समझ में नहीं आई कि विभाग ने पहले ही नए नियम के अनुसार फाइनल लिस्ट क्यों नहीं जारी की। इसे अचानक क्यों लागू किया गया।

इतिहास विभाग से जब लिस्ट जारी करने में हुई लापरवाही के मामले में पूछा गया तो उनका कहना था कि वे यूजीसी के नियमों से बंधे हैं इसलिए पुरानी लिस्ट को रद्द कर नई लिस्ट जारी की गई। हालांकि उनका कहना है कि वे भी यूजीसी के इस नियम से संतुष्ट नहीं हैं, इसीलिए पुराने नियमों के अनुसार लिस्ट जारी की गई थी।

खैर, मामला कुछ भी हो, पर इससे यह स्पष्ट है कि यूजीसी और दिल्ली विश्वविद्यालय के बीच ताल-मेल ठीक नहीं है, जिसका खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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