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कभी तो मुझ में घुल जाने के लिए आ

तस्वीरः गूगल साभार

-कहकशां

आना है तो पूरी तरह आ

कभी तो मुझ में घुल जाने के लिए आ,

 

ये दिया यूँ ही रखा है

कभी तो इसे जलाने के लिए आ,

 

कब तक तनहा काटें ये ज़िन्दगी

कभी तो बहलाने के लिए आ,

 

सपना ही नहीं हो, मेरे तुम

ये हक़ीक़त बयां करने के लिए आ,

 

मोहब्बत तुम्हे भी है, हमसे

चल, यही बताने के लिए आ,

 

ख़ुद को, खो कर तुझे पाया है

यही बताने के लिए आ,

 

नज़रे हैं खामोश मेरी

इससे गुफ़्तगू करने के लिए आ,

 

अब नहीं है हौसला हममें

तू, हौसला अफ़ज़ाई करने के लिए आ,

 

कितना लिखूं तुझे मैं

कभी तो मुझे गुनगुनाने के लिए आ,

 

थम गई हैं सांसे मेरी

इसे दुबारा चलाने के लिए आ,

 

मैं ही कितना समझूँ तुझे

तू भी तो मुझे कभी, समझाने के लिए आ

 

(कहकशां “सहर” दिल्ली विश्वविद्यालय में एमए हिंदी की छात्रा रह चुकी हैं)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

1 Comment on "कभी तो मुझ में घुल जाने के लिए आ"

  1. बहुत सुंदर प्रयास।

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