पुस्तक मेला- संजय भास्कर की कविता
जा तो नहीं सका हूँ अभी तक किसी भी पुस्तक मेले में पर जब भी पुस्तक मेला लगता है तो सोचा जरूर करता हूँ इतना सारा ज्ञान का भंडार एक साथ जब लोग देखते होंगे…
जा तो नहीं सका हूँ अभी तक किसी भी पुस्तक मेले में पर जब भी पुस्तक मेला लगता है तो सोचा जरूर करता हूँ इतना सारा ज्ञान का भंडार एक साथ जब लोग देखते होंगे…
“हिन्दी प्रदेश, नवजागरण और वैचारिक संकट” विषय पर अनहद कोलकाता की ओर से 5 जनवरी को वार्षिक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली से आए डॉ. वैभव सिंह ने हिन्दी…
दूर गर जाना था बातों में रुलाना था गम को मदहोशी जाम पिलाना था कहीं और दिल लगा बैठे थे तो खिलौना हमें ही बनाना था वो बदल गए मोहतरमा मासूम हैं…
अलसाई धुंधली सुबह के बाद बड़े दिन हुए चमकीली धूप निकली। लग रहा था कि कितने दिनों की नींद से ये कूनो का जंगल सोकर उठा है। ओस ने नहला के इसे राजा बेटे सा…