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वो बदल गए (कविता)

दूर गर जाना था बातों में रुलाना था

गम को मदहोशी जाम पिलाना था

 

कहीं और दिल लगा बैठे थे

तो खिलौना हमें ही बनाना था

 

वो बदल गए

 

मोहतरमा मासूम हैं बहुत

आँखों से कईयों के दिल तोड़े हैं

 

हम थे नासमझ

दिल मे गम लेकर फ़िरते रहे

लाल आँखों के साथ ग़मों की किताबें पढ़ते रहे

 

वो बदल गए

 

वादा नहीं किया था बिल्कुल

कि चलो साथ तुम

 

मगर ये भी तो नहीं कहा कि

चलती राहों में हाथ छोड़ देना

 

वो बदल गए

 

हम समझ गए पहले थे नासमझ

मरने लगे हैं दिल से

 

पर ग़मों ने जीना सिखाया है

तुम्हें न छोडूंगा ये वादा किया है ।

 

-नीरज सिंह

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Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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