कविताः पंछी पपीहा की व्यथा
वृक्ष धरा के हैं आभूषण, करते हैं नित दूर प्रदूषण अखिल विश्व के जीवन में नित जीवन रक्षक वायु बहाते सुंदर छाह पथिक को देते, राहगीर भी चलते-फिरते शरणागत हो जाते इनके। कवि चन्द्रशेखर तिवारी…
वृक्ष धरा के हैं आभूषण, करते हैं नित दूर प्रदूषण अखिल विश्व के जीवन में नित जीवन रक्षक वायु बहाते सुंदर छाह पथिक को देते, राहगीर भी चलते-फिरते शरणागत हो जाते इनके। कवि चन्द्रशेखर तिवारी…
दुनिया में हर कोई पागल है कोई किसी के प्यार में पागल है; कोई किसी के तकरार में पागल है; कोई पागल है इजहार-ए-मुहब्बत में तो, कोई किसी के इन्कार में पागल है! कोई…
मन में है कि मैं कुछ आज लिखूं, मगर क्या अपने मूल्यों को खोता संविधान लिखूं दर्दों से कराहता हिन्दुस्तान लिखूं गुड़िया, दामिनी के शोर को लिखूं या फिर मुल्क की सियासत के चोर लिखूं…
मुझे याद है धुएं के छल्ले फूंक मार के तोड़ना तुम्हें अच्छा लगता था लंबी होती राख झटकना बुझी सिगरेट उंगलियों में दबा लंबे कश भरना फिर खांसने का बहाना और देर तक हंसना…